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________________ खेत्तागमे पुढविकाइयादिखेत्तपरूवणं समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? || ३६ || सुगममेदं । सव्वलोगे ॥ ३७ ॥ देसामासियमुत्तमेदं, तेणेदेण सुइदत्थो बुच्चदे - वेयण- कसाय परिणदा एदे तिहूं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगादो संखेज्जगुणे, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे अच्छंति, एदेसिं पुढवीसु चेव अवट्टाणादो । बादरते उक्काइया वेउच्त्रियं गदा पंचन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे । मारणंतिय उववादगदा सव्वलोगे । कुदो ? असंखेज्जलोगपरिमाणादो | एवं बादरणिगोदपदिट्ठिदाणं तेसिमपज्जत्ताणं च वत्तव्यं । सुत्ते बादरणिगोदपदिट्टिदा किष्ण परुविदा ? ण, बादरवणफदिपत्तेयसरीरेसु तेसिमंतभावादो । कुदो पत्तेयसरीरतणेण तदो एदेसिं भेदाभावादो । २, ६, ३७.] [ ३३३ उक्त बादर पृथिवीकायिकादिक जीव समुद्घात व उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ।। ३६ ।। यह सूत्र सुगम है । उक्त बादर पृथिवीकायिकादि जीव समुद्घात व उपपाद से सर्व लोकमें रहते हैं ।। ३७ ।। यह सूत्र देशामर्शक है, इस कारण इसके द्वारा सूचित अर्थ कहते हैं - वेदना व कषाय समुद्घातको प्राप्त ये जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे, और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, इनका पृथिवियोंमें ही अवस्थान है । बादर तेजस्कायिक वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त होकर पांचों लोकोंके असंख्यातवें भागमें रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्घात व उपपादको प्राप्त वे ही जीव सर्व लोक में रहते हैं, क्योंकि, वे असंख्यात लोकप्रमाण हैं । इसी प्रकार बादर निगोदप्रतिष्ठित और उनके अपर्याप्त जीवोंका भी क्षेत्र कहना चाहिये । शंका- सूत्रमें बादर निगोदप्रतिष्ठित जीवोंकी प्ररूपणा क्यों नहीं की गई ?समाधान - नहीं, क्योंकि, उनका बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंमें अन्तर्भाव है, क्योंकि प्रत्येकशरीरपनेकी अपेक्षा उनसे इनके कोई भेद नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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