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________________ ३२४ ] डागमे खुदाबंध [ २, ६, २४. एदे तिणि विबादरेइंदिया मारणंतिय उववादपदेहि चैव सव्वलोए होंति । वेयण-कसायसमुग्घादेहि तिन्ह लोगाणं संखेज्जदिभागे, पर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे । वेउब्वियपदेण बादरेइंदिय अपज्जत्तवदिरित्तबादरेइंदिया चदुण्हें लोगाणमसंखेज्जदिभागे होंति । तदो समुग्धादेण सव्वलोगे इदि वयणं ण घडदे । ण एस दोसो, देसामा सयत्तादो | . इंदिय इंदिय चउरिंदिय तस्सेव पज्जत अपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेते ? ॥ २४ ॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ २५ ॥ एदेण सामासियसुत्तेण सूदत्थो बुच्चदे । तं जहा- सत्याणसत्याण-विहारवदिसत्थाण- वेयण-कसाय- समुग्वादगदा एदे बीइंदियादि छप्पि वग्गा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छंति, पज्जत्तखेत्तस्स शंका – ये तीनों ही बादर एकेन्द्रिय जीव मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे ही सर्व लोक में हैं। वेदनासमुद्घात व कपायसमुद्घान से तीन लोकोंके संख्यातवें भागमें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । वैक्रियिकपद से बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंको छोड़ शेष दो बादर एकेन्द्रिय चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में रहते हैं । इस कारण 'समुद्घातसे सर्व लोकमें रहते हैं ' यह कथन घटित नहीं होता ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यह सूत्र देशामर्शक है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और इन तीनोंके पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदसे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ।। २४ ॥ यह सूत्र सुगम है | उक्त द्वीन्द्रियादिक जीव उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ॥ २५ ॥ इस देशामर्शक सूत्र से सूचित अर्थ कहा जाता है। वह इस प्रकार है- स्वस्थानस्वस्थान, , विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, और कषायसमुद्घातको प्राप्त ये हीन्द्रिया दिक छहों वर्ग तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में, और बढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां पर्यातक्षेत्रकी प्रधानता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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