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२, ६, २३.
खेत्तागमे एइंदियखेत्तपरूवणं
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समचउरस्सा लोगणाली वादेण आउण्णा । तम्मि एगूणर्वचासरज्जुपदराणं जदि एगं जगपदरं लब्भदि तो पंचरज्जुमेतपदराणं किं लभामो त्ति फलगुणिदमिच्छं पमाणेणोवट्टिदे वे पंचभागूणएगूणसत्तरिरूवेहि घणलोगे भागे हिदे एगभागो आगच्छदि । पुणो मि लोग पेरं तदिवादक्खेत्तं संखेज्जजोयणबाहल्लजगपदरं अट्ठपुढविखेत्तं बादरजीवाहारं संखेज्जजोयणबाहल्लजगपदरमेत्तं अट्ठपुढवीणं हेडा ट्ठिदसंखेज्जजोयणबाहल्लजगपदरवादखेत्तं च आणेदुण पक्खित्ते लोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं अनंताणंतबादरेइंदियबादरेइंदियपज्जत्त- बादरेइंदियअपज्जत्तजीवावूरिदं खेत्तं जादं । तेणेदे तिणि वि बादरेइंदिया सत्थाणेण तिन्हं लोगाणं वा संखेज्जदिभागे अच्छंति सि वृत्तं ।
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समुग्धादेण उववादेण केवडिखेते ? ॥ २२ ॥
सुगममेदं । सव्वलो ॥ २३ ॥
तक पांच राजु ऊंची, समचतुष्कोण लोकनाली वायुसे परिपूर्ण है । उसमें उनंचास प्रतरराजुओंका यदि एक जगप्रतर प्राप्त होता है, तो पांच प्रतरराजुओंका कितना जगप्रतर प्राप्त होगा, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिको प्रमाणराशिसे अपवर्तित करनेपर दो बटे पांच भाग कम उनहत्तर रूपोंसे घनलोक के भाजित करनेपर लब्ध एक भागप्रमाण प्राप्त होता है । पुनः उसमें संख्यात योजन बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण लोकपर्यन्त स्थित वातक्षेत्रको, संख्यात योजन बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण ऐसे बादर जीवोंके आधारभूत आठ पृथिवी क्षेत्रको, और आठ पृथिवियोंके नीचे स्थित संख्यात योजन बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण वातक्षेत्रको लाकर मिला देनेपर लोकके संख्यातवें भागमात्र अनन्तानन्त बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त व बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंसे परिपूर्ण क्षेत्र होता है । इस कारण 'ये तीनों ही वादर एकेन्द्रिय स्वस्थान से तीन लोकोंके संख्यातवें भाग में एवं मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ' ऐसा कहा है ।
उक्त बादर एकेन्द्रिय जीव समुद्घात और उपपादमे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ २२ ॥
यह सूत्र सुगम 1
उक्त बादर एकेन्द्रिय जीव समुद्घात और उपपाद पदोंसे सर्व लोक में रहते हैं ॥ २३ ॥
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१ अप्रतौ मंचजगपदराणं ' इति पाठः ।
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२ प्रतिपु ' - पज्जता जीवारिदं ' इति पाठः ।
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