________________
३२२] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ६, २०. अह असंखेज्जगुणो' तो असंखेज्जदिभागो, अह सरिसो माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो, अह भागहारादो वेउवियरासी संखेज्जगुणो होदूण वेउव्वियखेत्तं माणुसखेत्तपमाणं होज्ज तो दो वि सरिसाणि, अह असंखज्जगुणो' होज्ज तो माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणं वेउब्धियखेत्तं । ण च एत्थ एवं चेव होदि त्ति णिच्छओ अत्थि । तेण माणुसखेत्तं ण विण्णायदे ।
(बादरेइंदिया पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाणेण केवडिखेत्ते? ॥२०॥ सुगममेदं । लोगस्स संखेज्जदिभागे ॥ २१ ॥
एदं देसामासियसुतं, तेणेदेण सूइदत्थस्स परूवणं कस्सामो । तं जहा- तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागे, णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति त्ति वत्तव्वं । किं कारणं ? जेण मंदरमूलादो उवरि जाव सदर-सहस्सारकप्पो त्ति पंचरज्जुउस्सेहेण
असंख्यातगुणा है तो वैक्रियिकक्षेत्र मानुपक्षेत्रके असंख्यातवें भागप्रमाण होगा, अथवा यदि वह भागहार वैक्रियिकराशिके सदृश है तो वैक्रियिकक्षेत्र मानुषक्षेत्रका संख्यातवां भाग होगा । अथवा यदि वह भागहारसे वैक्रियिकराशि संख्यातगुणी होकर वैक्रियिकक्षेत्र मानुषक्षेत्रप्रमाण है तो दोनों ही सदृश होंगे, अथवा यदि अंसंख्यातगुणा है तो वैक्रियिकक्षेत्र मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणा होगा। परन्तु यहांपर उक्त भागहार इतना ही है, ऐसा निश्चय नहीं है, अतः मानुषक्षेत्रके विषयमें ज्ञान नहीं है।
बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त स्वस्थानसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ २० ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त बादर एकेन्द्रिय जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ २१ ॥
यह देशामर्शक सूत्र है, इसलिये इसके द्वारा सूचित अर्थकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- उपर्युक्त बादर एकेन्द्रिय जीव तीन लोकोंके संख्यातवें भागमें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, ऐसा कहना चाहिये ।
शंका-उक्त क्षेत्रप्रमाणका कारण क्या है ? समाधान-क्योंकि, मन्दर पर्वतके मूल भागसे ऊपर शतार-सहस्रार कल्प
१ अप्रतौ — संखेज्जगुणो ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' भागहारो' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org