________________
३१२] छखंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ६, १४. णिचियक्कमेण । विण्णासकमेण' पुण असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणाओ। मारणंतियसमुग्घादगदा. तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणे अच्छंति । मारणंतियखेत्ताणयणविहाणं वुच्चदे - सूचिअंगुलपढम-तदियवग्गमूले गुणेदूण जगसेडिम्हि भागे हिदे दव्वं होदि। तम्हि आवलियाए असंखेज्जभागमेत उवक्कमणकालेण भागे हिदे एगसमयसंचिदमरंतरासी होदि । एदस्स असंखेज्जदिभागो मारणंतिएण विणा णिप्फिडमाणरासी होदि । पुणो मारणंतियरासिमावलियाए असंखेज्जदिभागेण मारणंतियउवक्कमणकालेण गुणिदे मारणंतियकालभंतरे संचिदरासी होदि । पुणो अवरेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे रज्जुआयामेण पलिदोवमअसंखेज्जदिभागेणोवट्टिदपदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागेण विक्खंभेण मुक्कमारंणतियरासी होदि । पुणो एदस्स ओगाहणगुणगारे ठविदे मारणंतियखेत्तं होदि । एत्थ ओवट्टणं जाणिय कायव्वं ।
क्रमसे रहते हैं। परन्तु विन्यासक्रमसे मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणी असंख्यात योजन कोटियां मनुष्य अपर्याप्तोंका क्षेत्र है । मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त हुए मनुष्य अपर्याप्त तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें और मनुष्यलोक एवं तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । मारणान्तिक क्षेत्रके निकालने का विधान कहते हैं- सूच्यंगुलके प्रथम और तृतीय वर्गमूलोंका परस्परमें गुणा कर जगश्रेणीमें भाग देनेपर मनुष्य अपर्याप्तोंका द्रव्यप्रमाण प्राप्त होता है। उसमें आवलीके असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमणकालका भाग देनेपर एक समय संचित मरनेवाले मनुष्य अपर्याप्तोंकी राशि होती है। इसके असंख्यातवें भागप्रमाण मारणान्तिकसमदघातके विना मरण करनेवाली राशि है। पुनः मारणान्तिक राशिको आवलीके असंख्यातवें भागरूप मारणान्तिक उपक्रमणकालसे गुणित करनेपर मारणान्तिक कालके भीतर संचित राशिका प्रमाण होता है । पुनः अन्य पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर जो लब्ध हो उतना, राजुप्रमाण आयामसे तथा पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण विष्कम्भसे मारणान्तिकसमुद्घातको करनेवाले मनुष्य अपर्याप्तों का प्रमाण होता है । पुनः इसके अवगाहनागुणकारके स्थापित करनेपर, अर्थात् इस राशिको अवगाहनासे गुणित करनेपर, मनुष्य अपर्याप्तकोंका मारणान्तिक क्षेत्र होता है। यहां अपवर्तन जानकर करना चाहिये।
१ प्रतिषु · विणासकमेण ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'संचिदमारणंतियरासी' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org