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३१० छक्खंडागमे खुदाबंधी
[ २, ६, १०. समुग्धादेण केवडिखेत्ते ? ॥१०॥
एत्थ समुग्धादणिद्देसो दवट्ठियणयमवलंबिय ह्रिदो, संगहिदवेदण-कसाय-बेउव्विय-मारणंतिय-तेजाहार-दंड-कवाड-पदर-लोगपूरणत्तादो । सेमं सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ११ ॥
जेण एवं देसामासियं सुत्तं तेणेदेण सूइदत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहावेदण-कसाय-वेउब्धिय-तेजहारसमुग्घादगदा तिविहा मणुसा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे । णवरि मणुसिणीसु तेजाहारं णत्थि । मारणंतियसमुग्घादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, पर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति। कुदो ? पहाणीकदमणुसअपज्जत्तखेतादो। णवरि मणुसपज्जत्त-मणुसिणीणं मारणंतियवेत्तं चदुण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणं । एवं दंड-कवाडखेत्ताणं पि बत्तव्वं । णवरि कवाडखेत्तं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो । संपहि पदर-लोगपूरण
उक्त तीन प्रकारके मनुष्य समुद्घातसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १० ॥
यहां समुद्घातका निर्देश द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करके स्थित है, क्योंकि, यह पद वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक, तैजस, आहार, दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण, इन सब समुद्घातोंका संग्रह करनेवाला है । शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
उक्त तीन प्रकारके मनुष्य समुद्घातकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ११ ॥
चूंकि यह देशामर्शक सूत्र है अतः इसके द्वारा सूचित अर्थकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-वेदना, कषाय, वैक्रियिक, तैजस और आहारक समुद्घातको प्राप्त तीन प्रकारके मनुष्य चार लोकोके असंख्यातवें भागमे तथा मनुष्यक्षेत्रके संख्यातवें भागमें रहते हैं। विशेष इतना है कि मनुष्यनियोंमें तैजस और आहारक समुद्घात नहीं होते । मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त उक्त तीन प्रकारके मनुष्य तीन लोकोंके असंख्यातवे भागमें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, यहां मनुष्य अपर्याप्तोंका क्षेत्र प्रधान है । विशेष इतना है कि मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंका मारणान्तिक क्षेत्र चार लोकोंके असंख्यातवें भाग तथा मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार दण्ड और कपाट क्षेत्रोंका भी प्रमाण कहना चाहिये। परन्तु इतना विशेष है कि कपाटक्षेत्र तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । अब प्रतर और
१ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठ ।
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