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खेत्ताणुगमो
खेत्तागमेण गदियाणुवादेण निरयगदीए णेरड्या सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ १ ॥
तत्थ सत्थाणं दुविहं सत्थाणसत्थाणं विहारवदिसत्थाणमिदि । वेयण-कसायवेउन्विय-मारणंतिय भेएण समुग्धादो चउन्विहो । एत्थ रइएस आहारसमुग्धादो णत्थि, महिद्विषत्तार्णमिसीणमभावादो । केवलिसमुग्धादो चि णत्थि, तत्थ सम्मत्तं मोत्तूण वयगंधस्स वि अभावादो | तेजइयसमुग्धादों वि तत्थ णत्थि, विणा महव्वएहि तदभावादो । उववादो एगविहो । तत्थ वेदणावसेण ससरीरादो बाहिमेगपदेसमादिं काढूण जावुकस्सेण ससरीरतिगुण विपुंजणं वेयणसमुग्धादो णाम । कसायतिव्वदाए ससरीरादो जीवपदेसाणं तिगुणविपुंजणं कसायसमुग्धादो णाम । विविहिद्धिस्स माहप्पेण संखेज्जासंखेज जोयणाणि सरीरेण ओहिय अट्ठाणं वेउब्वियसमुग्धादो णाम । अष्पष्पणो अच्छिदपदमादो
क्षेत्रानुगमसे गतिमार्गणा के अनुसार नरकगतिमें नारकी जीव स्वस्थान, समुद्रघात और उपपाद से कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ १ ॥
इनमें स्वस्थान पद स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थानके भेदसे दो प्रकार है | वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणंतिक के भेद से समुद्घात चार प्रकार है । यहां नारकियोंमें आहारकसमुद्घात नहीं है, क्योंकि, महर्धिप्राप्त ऋषियोंका वहां अभाव है । केवलिसमुद्घात भी नहीं है, क्योंकि, वहां सम्यक्त्वको छोड़ व्रतका गन्ध भी नहीं है । तैजससमुद्घात भी वहां नहीं है, क्योंकि, विना महाव्रतोंके तैजससमुद्घात नहीं होता । उपपाद एक प्रकार है । इनमें वेदनाके वशसे अपने शरीर से बाहर एक प्रदेशको आदि करके उत्कर्षतः अपने शरीर से तिगुणे आत्मप्रदेशोंके फैलने का नाम वेदनासमुद्घात है । कषायकी तीव्रतासे जीवप्रदेशोंका अपने शरीर से तिगुणे प्रमाण फैलने को कषायसमुद्घात कहते हैं । विविध ऋद्धियोंके माहात्म्य से संख्यात व असंख्यात योजनोंको शरीर से व्याप्त करके जीवप्रदेशों के अवस्थानको वैक्रियिकसमुद्घात कहते हैं । आयामकी
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१ प्रतिषु ' महिद्दित्ताण' इति पाठः ।
२ आ-काप्रत्योः ' तेजइयसमुग्वादे ' इति पाठः ।
३ अप्रतौ ' तिगुणाविपुंजणं ', आ-काप्रत्योः ' तिगुणविपुंजण ' इति पाठ: ।
४ अ-काप्रत्योः · विविहिद्दिस्स ' इति पाठः ।
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