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२९८ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ५, १६८. आहाराणुवादेण आहारा अणाहारा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥१६८॥
सुगमं ।
अणंता ॥ १६९॥
एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । तिविहेसु अणंतेसु अणिच्छिदाणंतपडिसेहट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
अणंताणंताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥ १७०॥
एदेण परित्त-जुत्ताणताणं जहण्णअणताणतस्स य पडिसेहो कदो, एदेसु अणंताणतोसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । उक्कस्सअणंताणंतस्स पडिसेहट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ १७१ ॥ एवं पि सुगमं ।
___ एवं दव्यपमाणाणुगमो त्ति समत्तमणिओगहारं ।
आहारमार्गणाके अनुसार आहारक और अनाहारक जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १६८ ॥
यह सूत्र सुगम है। आहारक और अनाहारक जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ॥ १६९ ॥
इस सूत्रके द्वारा संख्यात और असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है । तीन प्रकारके अनन्तोंमें अनिच्छित अनन्तोंके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
___ आहारक और अनाहारक जीव कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणीउत्सर्पिणियोंसे अपहृत नहीं होते हैं ॥ १७०॥
इस सूत्रके द्वारा परीतानन्त, युक्तानन्त और जघन्य अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, इनमें अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है। उत्कृष्ट अनन्तानन्तके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
आहारक और अनाहारक जीव क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण हैं ।।१७१॥ यह सूत्र भी सुगम है।
इस प्रकार द्रव्यप्रमाणानुगम अनियोगद्वार समाप्त हुआ।
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