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________________ २, ५, १४५.] दवपमाणाणुगमे ओहिंदसणीण पमाण [२९१ एदेण परित्त-जुनासंग्वेज्जाणं जहण्णासंखेज्जासंखेजस्स य पडिसेहो कदो, एत्थ असंखेज्जासंखेज्जोसप्पिणि-उस्सप्पिणीगमभावादो । इच्छिदअसंखेज्जासंखेज्जस्स जाणावणमुत्तरसुत्तं भणदि खेत्तेण चक्खुदंसणीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ १४३ ॥ सूचिअंगुलस्स संखेज्जदिभागं वग्गिय एदेण जगपदरम्म भागे हिदे चक्खु. दंसणिरासी होदि । एत्थ चरिंदियादिअपज्जत्तरासी चक्खुदंसणक्खओवसमलक्खिओ जदि घेप्पदि तो जगपदरस्स पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागो भागहारो होदि । णवरि सो एत्थ ण गहिदो, पज्जत्तरासिम्हि वा चक्खुईसणुवजोगाभावादो, दव्यचक्खुदंसणाभावादो वा । एदेण उक्कस्सामंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो को। अचक्खुदंसणी असंजदभंगो ॥ १४४ ॥ कुदो ? दयट्टियणयावलंबणे भेदाभावादो । सेसं सुगमं । ओहिदंसणी ओहिणाणिभंगो ॥ १४५ ॥ इस सूत्रके द्वारा परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और जयन्य असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, इनमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोका अभाव है । इच्छित असंख्यातासंख्यातके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं क्षेत्रकी अपेक्षा चक्षुदर्शनियों द्वारा सूच्यंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ।। १४३ ॥ सूच्यंगुल के संख्यातवें भागका वर्ग करके उसका जगप्रतरमें आग देनेपर चक्षुदर्शनीराशि होती है । यहां यदि चक्षुदर्शनावरण के क्षयोपशमले उपलक्षित चतुरिन्द्रियादि अपर्याप्त र शिका ग्रहण किया जाय तो प्रतरांगुल का असंख्यातवां भाग जगप्रतरका भागहार होता है । परन्तु उसे यहां नहीं ग्रहण किया, क्योंकि, तराशिमें पर्याप्त राशिके समान चक्षुदर्शनोपयोगका अभाव है, अथवा द्रव्यचक्षदर्शनका अभाव है। (देखो जीवस्थान द्रव्यप्रमाणानुगम, सूत्र १५७ की टीका)। इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है। अचक्षुदर्शनियोंका प्रमाण असंयतोंके समान है ।। १४४ ।। क्योंकि, द्रव्यार्थिक नय का अवलम्बन करने पर दोनोंमें कोई भेद नहीं है । शेष सूत्रार्थ सुगम है। अवधिदर्शनियोंका प्रमाण अवधिज्ञानियों के समान है ॥ १४५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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