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________________ २९० ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ५, १३९. वइपुल्लवाइयस्स अंतोमुहुत्तस्स गहणादो । एदेण पलिदोवमे भागे हिदे संजदासंजददव्वमागच्छदि । सेसं सुगमं । .. असंजदा मदिअण्णाणिभंगो ॥ १३९ ॥ पज्जवट्टियणए अवलंबिज्जमाणे जदि वि असंजदाणं तेहिंतो भेदो अस्थि तो वि असंजदा मदिअण्णाणिभंगो त्ति बुच्चदे, दबट्ठियणए अवलंबिज्जमाणे भेदाभावादो । दंसणाणुवादेण चक्खुदसणी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥१४॥ सुगमं । असंखज्जा ॥ १४१॥ एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो, तेसिं विरुज्झणिद्देसा । असंखेज्जं पि तिविहं । तत्थ अणहिययअसंखेज्जपडिसेहमुत्तरसुत्तमागदं असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसाप्पणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ १४२ ॥ चाहिये, क्योंकि, वैपुल्यवाची अन्तर्मुहर्तका यहां ग्रहण है । इस असंख्यात आवलीरूप अन्तर्मुहूर्तका पल्योपममें भाग देनेपर संयतासंयत द्रव्य आता है। (देखो जीवस्थानद्रव्यप्रमाणानुगम, पृ. ६९, ८७-८८ तथा स्पर्शनानुगम, पृ. १५७)। शेष सूत्रार्थ सुगम है । असंयतोंका प्रमाण मतिअज्ञानियों के समान है ॥ १३९ ।। पर्यायार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर यद्यपि असंयतोंके मतिअज्ञानियोंसे भेद है, तथापि 'असंयतोंका प्रमाण मतिअज्ञानियोंके समान है' ऐसा कहा है, क्योंकि, द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर दोनों में कोई भेद नहीं है। दर्शनमार्गणाके अनुसार चक्षुदर्शनी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १४ ॥ यह सूत्र सुगम है। चक्षुदर्शनी द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ १४१ ॥ इस सूत्रके द्वारा संख्यात और अनन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, यहां उनके विरुद्ध संख्याका निर्देश है। असंख्यात भी तीन प्रकार है। उनमेंसे अनधिकृत असंख्यातोंके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र प्राप्त होता है चक्षुदर्शनी कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंसे अपहृत होते हैं । १४२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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