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२, ५, १३८. दयपमाणाणुगमे संजदासजदाणं पमाणं .
[ २८९ एदं पि सुगमं । जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया? ॥१३४॥ सुगमं । सदसहस्सपुधत्तं ॥ १३५॥ एदस्स परूवणाए जीवट्ठाणभंगो । संजदासजदा दवपमाणेण केवडिया ? ॥ १३६ ॥ सुगमं । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो॥ १३७ ॥
एदेण संखेज्जाणंताणमुक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स य पडिसेहो कदो, एदेसि पडिवक्खसंखाणिदेसादो । जहण्णअसंखेज्जासंखेज्जाओ हेडिमसंखेज्जाणं पडिसेहमुत्तरसुत्तं भणदि
एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण ॥ १३८ ॥ एत्थ अंतोमुहुत्तमिदि वुत्ते' असंखेज्जावलियाओ त्ति घेत्तव्वं । कुदो ? यह सूत्र भी सुगम है। यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १३४ ॥ यह सूत्र सुगम है। यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत द्रव्यप्रमाणसे शतसहस्रपृथक्त्वप्रमाण हैं ॥ १३५ ।।
इसकी प्ररूपणा जीवस्थानके समान है। (देखो जीवस्थान-द्रव्यप्रमाणानुगम, पृ. ९७,४५०)।
संयतासंयत द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १३६ ॥ यह सूत्र सुगम है। संयतासंयत द्रव्यप्रमाणसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ १३७ ॥
इस सूत्रके द्वारा संख्यात, अनन्त और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, यहां इनके प्रतिपक्षभूत संख्याका निर्देश है । जघन्य असंख्यातासंख्यातसे नीचेके असंख्यातोंके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
संयतासंयतों द्वारा अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम अपहत होता है ॥ १३८ । यहां 'अन्तर्मुहूर्त' ऐसा कहनेपर 'असंख्यात आवलियां' ऐसा ग्रहण करना
१ प्रतिषु ' वुत्तं ' इति पाठः ।
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