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________________ २९२] छखंडागमे खुदाबंधो [२, ५, १४६. सुगमं । केवलदसणी केवलणाणिभंगो ।। १४६ ॥ एदं पि सुगमं । लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सिया असंजदभंगों ॥ १४७ ॥ कुदो ? दयट्टियणयावलंबणादो । पज्जवट्टियणर पुण अवलंबिज्जमाणे अस्थि विसेसो, सो जाणिय वत्तव्यो। तेउलेस्सिया दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १४८ ॥ सुगम । जोदिसियदेवेहि सादिरेयं ॥ १४९ ॥ बेछप्पण्णंगुलसदबग्गेण सादिरेगेण जगपदरम्मि भागे हिदे जोदिसियदेवा तेउ यह सूत्र सुगम है। केवलदर्शनियोंका प्रमाण केवलज्ञानियों के समान है ॥ १४६ ।। यह सूत्र भी सुगम है। लेश्यामार्गणाके अनुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण असंयतोंके समान है ॥ १४७ ।। क्योंकि, यहां द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन किया गया है । परन्तु पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर विशेषता है, उसे जानकर कहना चाहिये । तेजोलेश्यावाले द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १४८ ।। यह सूत्र सुगम है। तेजोलेश्यावाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा ज्योतिषी देवोंसे कुछ अधिक हैं ॥१४९।। साधिक दो सौ छप्पन अंगुलोंके वर्गका जगप्रतरमें भाग देनेपर जो लब्ध हो १ कृष्ण-नील कापोतलेश्या एकशी द्रव्यप्रमाणेनानन्तानन्ताः, अनन्तानन्ताभिम् सपिण्यवसर्पिणीमि प. हियन्ते कालेन, क्षेत्रेणानन्तानन्तलोकाः । त. रा. ४, २२, १०. २ तेजोलेश्या द्रव्यत्रमाणेन ज्योतिदेवाः साधिकाः । त. स. ४.२२, १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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