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________________ २, ५, १११. 1 दव्यपमाणाणुगमे अवगदवेदाणं पमाणं । २८३ ताणमोसप्पिणि-उस्सपिणीणमभावादो । दोसु अणंताणतेसु एक्कस्सावहारणद्वमुत्तरसुतं भणदि खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ १०९ ॥ एदेण उक्कस्साणताणंतस्स पडिसेहो कदो । कुदो ? लोगणिदेसणहाणुववत्तीदो। अवगदवेदा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ११० ॥ सुगम । अणंता ॥ १११ ॥ एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । तिबिहे अणते कम्हि अवगदवेदाणं पमाणं होदि ? अणंताणते । कुदो ? अदीदकालस्स उक्कस्सजुत्ताणतं जहण्णमणताणतं च उल्लंधिय अजहण्णाणुक्कस्सागंताणतम्मि अवट्ठिदस्स असंखेज्जदिभागभूदअवगदवेदरासी अणंताणतो होदि ति अविरुद्धाइरियउवदेमादो । सेसं सुगमं । गया है, क्योंकि, इनमें अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियों का अभाव है। शेष दो अनन्तानन्तोंमेंसे एकके अवधारणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं नपुंसकवेदी क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण हैं ॥ १०९॥ इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, अन्यथा लोकनिर्देशकी उपपत्ति नहीं बनती। अपगतवेदी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ११० ॥ यह मूत्र सुगम है। अपगतवेदी द्रव्य प्रमाणसे अनन्त है ।। १११ ।। इस सूपके द्वारा संख्यात व असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है। शंका - तीन प्रकारके अनन्तमेसे कौनसे अनन्तमें अपगतवेदियोका प्रमाण है ? समाधान-अपगतवेदियोंका प्रमाण अनन्तानन्त संख्या है, क्योंकि, उत्कृष्ट युक्तानन्त और जघन्य अनन्तानन्तको लांघकर अजघन्यानुत्कृष्ट अनन्तानन्तमें अवस्थित अतीत कालके असंख्यातवें भागभूत अपगतवेदराशी अनन्तानन्त है, ऐसा अविरुद्ध अर्थात् एक मतसे आचार्योंका उपदेश है । शेष सूत्रार्थ सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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