________________
२८० ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ५, ९६. वेउव्वियमिस्सकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ९६ ॥ सुगमं । देवाणं संखेज्जदिभागो ॥ ९७ ॥
देवरासिं संखेजवाससहस्सुवक्कमणकालसंचिदसंखेज्जखंडे कदे एगखंडं वेउब्धियमिस्सरासिपमाणं होदि।
आहारकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ९८ ॥ सुगमं । चदुवण्णं ॥ ९९ ॥ एवं पि सुगमं । आहारमिस्सकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १० ॥ सुगमं । संखेज्जा ॥ १०१ ॥
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ९६ ॥ यह सूत्र सुगम है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे देवोंके संख्यातवें भागमात्र हैं ॥ ९७ ।।
संख्यात वर्षसहस्रमें होनेवाले उपक्रमणकालोंमें संचित देवराशिके संख्यात खण्ड करनेपर उनमेंसे एक खण्ड वैक्रियिकमिश्रकाययोगी राशिका प्रमाण होता है । (देखो जीवस्थान द्रव्यप्रमाणानुगम, पृ. ४०० का विशेषार्थ)।
आहारकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ९८ ॥ यह सूत्र सुगम है। आहारककाययोगी द्रव्यप्रमाणसे चौवन हैं ॥ ९९ ।। यह सूत्र भी सुगम है। आहारकमिश्रकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १० ॥ यह सूत्र सुगम है। आहारकमिश्रकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे संख्यात हैं ॥ १.१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org