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________________ २, ५, ९५.] दव्वपमाणाणुगमे कायजोगीण पमाणं [ २७९ अणंताणंताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥ ९२ ॥ एदेण परित्त-जुत्ताणताणं' जहरणअणंताणंतस्स य पडिसेहो कदो, तेसु अणंताणंताणमोसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । संपहि दोसु अणताणतेसु एक्कस्स पडिसेहहमुत्तरसुतं भणदि खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ ९३ ॥ एदेण उक्कस्साणताणंतस्स पडिसेहो कदो, लोगवयणण्णहाणुववत्तीदो । सेसं सुगमं । वेउब्बियकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ९४ ॥ सुगमं । देवाणं संखेज्जदिभागूणो ॥ ९५ ॥ देवेसु पंचमण-पंचवचि-वेउब्धियमिस्सकायजोगिरासीओ देवाणं संखज्जदिभागमेत्ताओ देवरासीदो अवणिदे अवसेसं वेउन्वियकायजोगिपमाणं होदि । उपर्युक्त जीव कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंसे अपहृत नहीं होते हैं ॥ ९२ ॥ इस सूत्रके द्वारा परीतानन्त, युक्तानन्त और जघन्य अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उनमें अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है। अब दो अनन्तानन्तोंमेंसे एकके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं उपर्युक्त जीव क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण हैं ॥ ९३ ॥ इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, अन्यथा लोकनिर्देशकी उपपत्ति नहीं बनती। शेष सूत्रार्थ सुगम है। वैक्रियिककाययोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ९४ ॥ यह सूत्र सुगम है। चैक्रियिककाययोगी देवोंके संख्यातवें भागसे कम है ॥ ९५ ॥ देवोंमें पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी और वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, इन देवोंके संख्यातवें भागमात्र राशियोंको देवराशिमेसे घटा देनेपर अवशेष वैक्रियिककाययोगियोंका प्रमाण होता है। १ प्रतिषु 'परित-जुत्ताणं ' इति पाठ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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