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________________ २, ५, ७५.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादीणं पमाणं [ २७३ असंखेज्जा ॥ ७२॥ एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो । असंखेज पि तिविहं परित्त-जुत्तअसंखेज्जासंखेज्जभेएण । तत्थ परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं जहण्णुक्कस्सासंखेज्जासंखेज्जाणं च पडिसेहमुत्तरसुत्तं भणदि असंखेज्जावलियवग्गो आवलियघणस्स अंतो ॥ ७३ ॥ असंखेज्जावलियवग्गो त्ति वुत्ते पदरावलियप्पहडिउवरिमवग्गाणं गहणं पत्ते तष्णिवारणट्ठमावलियघणस्स अंतो इदि वुत्तं । सेसं सुगमं । बादरवाउपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ७४ ॥ सुगमं । असंखेज्जा ॥ ७५॥ संखेज्जाणताणं पडिसेहो एदेण कदो । तिविहेसु असंखेज्जेसु एदम्हि असंखेज्जे ....................................... बादर तेजकायिक पर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ।। ७२ ॥ इस सूत्रके द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया गया है । असंख्यात भी परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यातके भेदसे तीन प्रकार है। उनमें परीतासंख्यात, युक्तासख्यात, जघन्य असंख्यातासंख्यात और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं उक्त असंख्यातका प्रमाण असंख्यात आवलियोंके वर्गरूप है जो आवलीके घनके भीतर आता है ।। ७३ ॥ 'उक्त असंख्यातका प्रमाण असंख्यात आवलियोंके वर्गरूप है ' ऐसा कहनेपर प्रतरावली आदि उपरिम वर्गीके ग्रहणके प्राप्त होनेपर उनके निवारणार्थ 'आवलीके घनके भीतर है' ऐसा कहा गया है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ७४ ॥ यह सूत्र सुगम है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ ७५ ॥ इस सूत्रके द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया है। तीन प्रकारके असं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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