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________________ २७२) छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ५, ६९. असंखेज्जासंखेजाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ६९ ॥ एदेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं जहण्णअसंखेज्जासंखेज्जस्स य पडिसेहो कदो, तेसु असंखेज्जासंखेज्जोसप्पिणी-उस्सप्पिणीणमभावादो। उक्कस्सासंखेज्जासंखेज्जपडिसेहट्टमुत्तरसुत्तं भणदि खेत्तेण बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरवणप्फदिकाइयंपत्तेयसरीरपज्जत्तएहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ ७॥ एत्थ सूचिअंगुलस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो भागहारो होदि । सेसं सुगमं । बादरतेउपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ७१ ॥ सुगमं । उक्त जीव कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सपिणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ ६९॥. इस सूत्रके द्वारा परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और जघन्य असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उनमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है । उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं - क्षेत्रकी अपेक्षा बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवों द्वारा सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ७० ॥ यहां पल्योपमका असंख्यातवां भाग सूच्यंगुलका भागहार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। बादर तेजकायिक पर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ।। ७१ ॥ यह सूत्र सुगम है। १ प्रतिषु · संखेज्जोस प्पिणीणमभावादो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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