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________________ पाणामेकाइयादीणं पमाणं २, ५, ६८. ] [ २७१ सुहुम आउकाइय-सुहुमते उकाइय- सुहुमवाउकाइय तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ।। ६५ ॥ सुमं । असंखेज्जा लोगा ॥ ६६ ॥ एदेण संखेज्जाणंताणं परित्त - जुत्तासंखेज्जाणं जहण्णुक्कस्स असंखेज्जासंखेज्जाणं डिसेहो कदो । सेसं सुगमं । बादरपुढविकाइय-वादर आउकाइय- बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ६७ ॥ सुगमं । असंखेज्जा ॥ ६८ ॥ एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो । तं पि असंखेज्जं तिविहं । तत्थेक्कस् सेव गहणमुत्तरमुत्तं भणदि सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म तेजकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और इन्हीं चार सूक्ष्मों के पर्याप्त व अपर्याप्त, ये प्रत्येक जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ६५ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवों में प्रत्येक जीवराशि असंख्यात लोकप्रमाण है ॥ ६६ ॥ इस सूत्र के द्वारा संख्यात, अनन्त, परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात, जघन्य असंख्याता संख्यात और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है । शेष सूत्रार्थ सुगम है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ६७ ॥ यह सूत्र सुगम है । उक्त जीव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं || ६८ ॥ इस सूत्र के द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया गया है । वह असंख्यात भी तीन प्रकार है । उनमें एकके ही ग्रहणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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