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.२, ५, ५७.1 दव्यपमाणाणुगमे एइंदियाणं पमाणं
। २६७ एत्थ अंतोमुहुत्तपमाणमावलियाए असंखेज्जदिभागो । संखेज्जावलियासु संखेज्जाणं जीवाणमुवक्कमे संते कधं पलिदोवमस्स आवलियाए असंखेज्जदिभागो भागहारो होदि ? ण एत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागो संखज्जावलियाओ वा अंतोमुहुत्तं, किंतु असंखज्जावलियाओ एत्थ अंतोमुहुत्तमिदि घेत्तव्याओ। कधमसंखेज्जावलियाणमंतोमुद्दत्तत्तं ? ण, कज्जे कारणोवयारेण तासिं तदविरोहादो।
सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया? ॥५५॥ सुगमं । असंखेज्जा ॥५६॥ एदं पि सुगमं ।
इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ५७ ॥
होता है। यहां अन्तर्मुहूर्त का प्रमाण आवलीका असंख्यातवां भाग है ।
शंका--संख्यात आवलियोंमें संख्यात जीवोंका उपक्रम होनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग पल्योपमका भागहार कैसे हो सकता है ?
समाधान-यहां आवलीका असंख्यातवां भाग अथवा संख्यात अवलियां अन्तर्मुहूर्त नहीं है, किन्तु यहां असंख्यात आवलियां अन्तर्मुहूर्त हैं,ऐसा ग्रहण करना चाहिये। ( देखो जीवस्थान द्रव्यप्रमाणानुगम, पृ. २८५)।
शंका - असंख्यात आवलियोंके अन्तर्मुहूर्तपना कैसे बन सकता ?
समाधान-कार्यमें कारणका उपचार करनेसे असंख्यात आवलियोंके अन्तर्मुहर्तपनेका कोई विरोध नहीं है ।
सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ५५ ॥ यह सूत्र सुगम है। सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ।। ५६ । यह सूत्र भी सुगम है।
इन्द्रियमार्गणाके अनुसार एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय पर्याप्त, एकेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने
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