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________________ २६६ ] छक्खंडागमे खुद्दाधो [ २, ५, ५२. दो ! सेडीए असंखेज्जभागत्तणेण एदेसिं तत्तो भेदाभावादो । विसेसदो पुण दो अस्थि, सेडीए एक्कारस-णवम-सत्तम- पंचम- चउत्थवग्गमूलाणं जहाक्रमेण सेडी भागहाराणमेत्युवलंभादो । एदे भागहारा एत्थ होंति त्ति कथं णव्वदे ? आइरिय परंपरागदअविरुद्धवदेसादो । आणद जाव अवराइदविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ५२ ॥ सुमं । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो || ५३ ॥ एदेण संखेज्जस्स पडिसेहो कदो । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो वि अणेयपयारो, तणिण्णयद्वमुत्तरसुत्तं भणदि एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्ते ॥ ५४ ॥ देहि तदेवेहि पलिदोवमे अवहिरिज्जमाणे अंतोमुहुत्तेण पलिदोवममवहिरदि । क्योंकि, इनके जगश्रेणके असंख्यातवें भागत्वकी अपेक्षा सप्तम पृथिवीके नारकियों से कोई भेद नहीं है । परन्तु विशेषकी अपेक्षा भेद है, क्योंकि, यहां यथाक्रम से ग्यारहवां, नौवां, सातवां, पांचवां और चौथा, इन जगश्रेणी के वर्गमूलकी श्रेणीभागहाररूप से उपलब्धि है । शंका- ये भागहार यहां हैं, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - यह आचार्यपरम्परागत अविरुद्ध उपदेशसे जाना जाता है । आन से लेकर अपराजित विमान तकके विमानवासी देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ५२ ॥ यह सूत्र सुगम है । उपर्युक्त देव द्रव्यप्रमाणसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र हैं ॥ ५३ ॥ इस सूत्र द्वारा संख्यातका प्रतिषेध किया है । पल्योपमका असंख्यातवां भाग भी अनेक प्रकार है, उसके निर्णयार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं इन देवोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम अपहृत होता है ॥ ५४ ॥ इन पूर्वोक्त देवों द्वारा पल्योपमके अपहृत करनेपर अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम अपहृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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