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________________ २, ५, ५१.] दबपमाणाणुगमे सणवकुमारादिदेवाणं पमाणं (२६५ खेत्तेण असंखेज्जाओ सेडीओ ॥४८॥ एदेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेजस्स पडिसेहो कदो, लोगादिणिदेसाणमभावादो । असंखेजाओ सेडीओ अणेयवियप्पाओ । तासिं णिण्णयद्वमुत्तरसुत्तं भणदि पदरस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४९ ॥ एदेण जगपदरस्स दुभाग-तिभागादिपडिसेहो कदो। पदरस्स असंखेज्जदिभागो . वि अणेयवियप्पो त्ति जादसंदेहविणासणटुं उत्तरसुत्तं भणदि तासिं सेडीणं विक्खंभसूची अंगुलस्स वग्गमूलं बिदियं तदियवग्गमूलगुणिदेण ॥ ५० ॥ सूचिअंगुलविदियवग्गमूलं तस्सेव तदियवग्गमूलगुणिदं सेडीण विक्खंभस्स सूची होदि । घणंगुलतदियवग्गमूलमेत्तसेडीओ सोधम्मीसाणकप्पेसु देवा होति त्ति वुत्तं होदि । सणक्कुमार जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवा सत्तमपुढवीभंगो॥५१॥ उपर्युक्त देव क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं ॥ ४८ ॥ इसके द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, यहां लोकादिकोंके निर्देशका अभाव है । असंख्यात जगश्रेणियां अनेक विकल्परूप है । उनके निर्णयार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं-- ये असंख्यात जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ ४९ ॥ __इस सूत्र द्वारा जगप्रतरके द्वितीय-तृतीय भागादिकोका प्रतिषेध किया गया है। जगप्रतरका असंख्यातवां भाग भी अनेक विकल्परूप है, इस कारण उत्पन्न हुए सन्देहक विनाशनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं-- उन असंख्यात जगश्रेणियोंकी विष्कम्भस्सूची सूच्यंगुलके तृतीय वर्गमूलसे गुणित सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलप्रमाण है ॥ ५० ॥ सूच्यंगुलका द्वितीय वर्गमूल उसीके तृतीय वर्गमूलसे गुणित होकर असंख्यात जगश्रेणियोंके विष्कम्भकी सूची होता है। घनांगुलके तृतीय वर्गमूलमात्र जगश्रेणीप्रमाण सौधर्म-ईशान कल्पोंमें देव हैं, यह उक्त कथन का फलितार्थ है। सनत्कुमारसे लेकर शतार-सहस्रार कल्प तकके कल्पवासी देवोंका प्रमाण सप्तम पृथिवीके समान है ॥ ५१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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