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२, ५, ३१.1 दव्यपमाणाणुगमे देवाणं पमाणे
[२५९ एदस्स तिण्णि चदुब्भागा मणुसिणीओ, एगो चदुन्भागो पुरिस-णqसयरासी होदि। सहीणबुद्धीए पुण जोइज्जमाणे एदेण सुत्तेण सह वक्खाणाइरिएहि परूविदमणुसपज्जस. रासिपमाणं णियमेण विरुज्झदे, कोडाकोडाकोडाकोडीए हेढदो त्ति सुत्तम्मि एगवयणणिदेसादो । ण च ट्ठाणसण्णा संखेज्जे वट्टदे जेण णवण्हं कोडाकोडाकोडाकोडीणं. कोडाकोडाकोडाकोडित्तं होज्ज, विरोहादो। किं च ण बक्खाणाइरियपरूविदं मणुस्सपजत्तरासिपमाणं होदि, मणुसखेत्तम्मि तस्स वत्तीए' अभावादो, एदम्हादो सत्तगुणसव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवाणं पि जोयणलक्खम्मि अवट्ठाणाभावादो च । सेसं सुगमं ।
देवगदीए देवा दब्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ३० ॥ . एदमासंकासुत्तं संखेज्जासंखेज्जाणंतालंबणं । असंखेज्जा ॥ ३१ ॥ एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो,
पर्याप्त मनुष्य राशिके चार भागोंमेंसे तीन भागप्रमाण मनुष्यनियां हैं और एक चतुर्थांश पुरुष व नपुंसक राशि है। किन्तु स्वाधीन बुद्धिसे देखने पर अर्थात् स्वतंत्रतासे विचार करनेपर इस सूत्रके साथ व्याख्यानाचार्यों द्वारा निरूपित मनुष्य पर्याप्त राशिका प्रमाण नियमसे विरोधको प्राप्त होता है, क्योंकि, 'कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ीके नीचे' इस प्रकार सूत्र में एक वचनका निर्देश किया गया है। और स्थानसंज्ञा संख्यातमें है नहीं, जिससे नौ कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ियोंको (एकत्वरूपसे) कोडाकोड़ाकोड़ाकोड़ीपना हो सके, क्योंकि, ऐसा मानने में विरोध है । इसके अतिरिक्त व्याख्यानाचार्यों द्वारा प्ररूपित मनुष्य पर्याप्त राशिका प्रमाण बनता भी नहीं है, क्योंकि, इस प्रकार मनुष्यक्षेत्रमें उक्त मनुष्यराशिकी स्थिति नहीं हो सकती, तथा इससे (मनुष्यनीराशिसे) सातगुणे सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवोंका भी एक लाख योजनमें अवस्थान नहीं बन सकता। (विशेष जानने के लिये देखो पुस्तक ३, पृ. २५८ का विशेषार्थ)। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
देवगतिमें देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ३० ॥ यह आशंकासूत्र संख्यात, असंख्यात व अनन्तका अवलम्बन करनेवाला है। देवगतिमें देव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ ३१ ।।। इस सूत्रके द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि
१ प्रतिषु । एदो' इति पाठः ।
२ प्रतिषु तवीए' इति पारः
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