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________________ २५८ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो • तललीन मधुग विमलं धूमसिलागाविचारभयमेरू । तटहरिखझसा होंति हु माणुसपज्जत्तसंखका ॥ २ ॥ एसो उपदेसो कोडाकोडाकोडा कोडिए हेट्ठदो त्ति सुत्तेण कथं ण विरुज्झदे ? ण, एगको डाकोडाकोडा कोडिमादिं काढूण जाव रूवूणदसकोडाकोडाकोडा कोडि त्ति एवं सव्वं पि कोडाकोडाकोडा कोडि त्ति गहणादो । ण च एदस्स द्वाणस्सुक्कस्सं वोलेदूण मणुसपज्जत्तरासी ट्टिदा, अट्ठण्हं को डाकोडाकोडाकोडीणं हेट्ठदो तस्स अवद्वाणदंसणादो । तकारादि अक्षरोंसे सूचित क्रमशः छह, तीन, तीन, शून्य, पांच, नौ, तीन चार, पांच, तीन, नौ, पांच, सात, तीन, तीन, चार, छह, दो, चार, एक, पांच, दो, छह, एक, आठ, दो, दो, नौ, और सात, ये मनुष्य पर्याप्त राशिकी संख्या के अंक हैं ||२|| विशेषार्थ - किस अक्षरसे किस अंकका बोध होता है, इसके परिज्ञानार्थ गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ) में आई हुई इसी गाथाकी ( १५८ ) सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका हिन्दी टीका में निम्न गाथा उद्घृत की है कटपयपुरस्थवर्णैर्नवनवपंचाटकल्पितैः क्रमशः । स्वरजनशून्यं संख्या मात्रोपरिमाक्षरं त्याज्यम् ॥ अर्थात् क ख इत्यादि नौ अक्षरोंसे क्रमशः एक-दो आदि नौ संख्या तक ग्रहण करना चाहिये । जैसे - क ख ग घ ङ च इत्यादि । इसी प्रकार ट-ठ इत्यादिसे भी एक [ २, ५,२९. १ २ ३ ४ ५ ६ दो क्रमसे नौ तक, प से म तक पांच अक्षरोंसे पांच तक, और य से ह तक आठ अक्षरोंसे क्रमशः एक-दो आदि आठ तक अंकोंका ग्रहण करना चाहिये । स्वर, अ और न शून्य के सूचक हैं | मात्रा और उपरिम अक्षरको छोड़ना चाहिये, अर्थात् उससे किसी अंकका बोध नहीं होता । Jain Education International शंका- यह उपदेश 'कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ीसे नीचे ' इस सूत्र से कैसे विरोधको न प्राप्त होगा ? समाधान- नहीं, क्योंकि, एक कोड़ाकोड़ाकोड़ा कोड़ीको आदि करके एक कम दश कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ी तक इस सबको भी कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ीरूपसे ग्रहण किया गया है । और इस स्थानके उत्कर्षका उलंघन कर मनुष्य पर्याप्त राशि स्थित नहीं है: क्योंकि, उसका अवस्थान आठ कोड़ाकोड़ाकोड़ा कोड़ीके नीचे देखा जाता है । १ प्रतिषु ' तललीण- ' इति पाठः । ३ गो जी. १५८. २ प्रतिषु ' खजसा ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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