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२, ५, २९.] दव्यपमाणाणुगमे मगुस्सपज्जत्त-मणुसिणीणं पमाणं [२५७ मुव्वरंताणमवणयणटुं । तं चेव सलागरासिं ठविय रूवाहियमणुस्सपज्जत्तभहियमणुसअपज्जत्तरासिणा अवहिरदि । किम रूवाहियमणुस्संपज्जत्तरासी पक्खिप्पदे ? मणुसअपजत्तरासिपमाणेण' जगसेडीए अवहिरिजमाणाए सलागरासिमत्तरूवाहियमणुसपजत्तरासिस्स उव्यरंतस्स अवणयणहूं।
मणुस्सपज्जत्ता मणुसिणीओ दब्वपमाणेण केवडिया ? ॥२८॥ सुगमं ।
कोडाकोडाकोडीए उवरि कोडाकोडाकोडाकोडीए हेट्टदो छण्हं वग्गाणमुवरि सत्तण्हं वग्गाणं हेढदो ॥ २९ ॥
एवं सामण्णेण जदि वि सुत्ते वुत्तं तो वि आइरियपरंपरागदेण गुरूवदेसेण अविरुद्धेण पंचमवग्गस्स घणमेत्तो मणुसपज्जत्तरासी होदि त्ति घेत्तव्यो । तस्स पमाणमेदं७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ । एत्थ गाहा
लिये उसमें रूपका प्रक्षेप किया जाता है। (इन राशियोंके लिये देखो पुस्तक ३, पृ. २४९)।
उपर्युक्त शलाकाराशिको ही स्थापित कर रूपाधिक मनुष्य पर्याप्त राशिसे अधिक मनुष्य अपर्याप्त राशिसे जगश्रेणी अपहृत होती है ।
शंका-रूपाधिक मनुष्य पर्याप्त राशिका प्रक्षेप किस लिये किया जाता है ?
समाधान-मनुष्य अपर्याप्त राशिप्रमाणसे जगश्रेणीके अपहृत करनेपर शलाकाराशिमात्र शेष रूपाधिक मनुष्यराशिको घटानेके लिये उक्त राशिका प्रक्षेप किया जाता है।
मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियां द्रव्यप्रमाणसे कितनी हैं ? ॥२८॥ यह सूत्र सुगम है।
कोडाकोडाकोड़ीके ऊपर और कोड़ाकोड़ाकोड़ाकोड़ीके नीचे छह वर्गोंके ऊपर व सात वर्गोंके नीचे अर्थात् छठे और सातवें वर्गके बीचकी संख्याप्रमाण मनुष्यपर्याप्त व मनुष्यनियां हैं ॥ २९ ॥
__ यद्यपि इस प्रकार सूत्र में सामान्यरूपसे ही कहा है, तथापि आचार्यपरम्परागत अविरुद्ध गुरूपदेशसे पंचम वर्गके घनप्रमाण मनुष्य पर्याप्त राशि है, इस प्रकार ग्रहण करना चाहिये। उसका प्रमाण यह है-७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ । यहां गाथा
१ अ-आप्रत्योः । रासिमाणेण ' इति पाठः।
२ प्रतिषु 'पुणमेलो' इति पाठः।
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