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२५२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ५, १८. गंतसंखाभावादो । उक्कस्साणंताणंतस्स वि पडिसेहो कदो, अणंताणताणि सव्वपज्जयपढमवग्गमूलाणि त्ति अभणिदूण अणंताणता लोगा ति णिदेसादो।।
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-पचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १८ ।।
एदमासंकासुत्तं संखेज्जासंखेज्ज-अणंताणि अवेक्खदे। असंखेज्जा ॥ १९ ॥
एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो, असंखेन्जम्मि तदुभयसंभवाविरोहादो । तं पि असंखेज परित्त-जुत्त-असंखेज्जासंखेज्जभेएण तिविहं । तत्थ इमम्मि असंखेज्जे एदेसिमवट्ठाणमिदि जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि -
___ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ २० ॥
एदेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो, तत्थ असंखेज्जासंखेज्जाणं
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अनन्तानन्त संख्याका अभाव है।
उत्कृष्ट अनन्तानन्तका भी प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, 'अनन्तानन्त सर्व पर्यायोंके प्रथम वर्गमूल' ऐसा न कहकर 'अनन्तानन्त लोक' ऐसा निर्देश किया है।
पंचेन्द्रिय तियंच, पंचेन्द्रिय तियंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तियं च योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १८ ॥
यह आशंकासूत्र संख्यात, असंख्यात और अनन्तकी अपेक्षा करता है। उपर्युक्त तिथंच द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ १९ ॥
इसके द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, असंख्यातमें संख्यात व अनन्त इन दोनोंकी संभावनाका विरोध है। वह असंख्यात भी परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यातके भेदसे तीन प्रकार है । उनमें से इस असंख्यातमें उक्त जीवोंका अवस्थान है, इसके झापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
उक्त चारों तिथंच जीव कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ २० ॥
इस सूत्रके द्वारा परीतासंख्यात और युक्तासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है,
१ प्रतिषु ' उवेकखदे' इति पाठः ।
२ अ-आप्रत्योः ' असंखेजसखेरजाणं ' इति पामः।
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