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२, ५, १७. ]
व्यमाणागमे तिरिक्खाणं पमाणं
[२५१
अणताणताहि ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण
॥ १६ ॥
किमट्टमणंताणंताहि ओसप्पिणि- उस्सप्पिणीहि तिरिक्खा ण अवहिरिज्जंति ? अतीदकालग्गहणादो | अवहरिदे संते को दोसो ? ण, भव्वजीवाणं सव्वेसिं' वोच्छेदसंगादो | एदेण परित्त- जुत्ताणंताणं पडिसेहो कदो । अनंताणंत पि जहण्णुक्कस्सतव्वदिरित्तएण तिविहं होदि । तत्थ एदम्हि अणंताणंते तिरिक्खा ट्ठिदा त्ति जाणावणट्टमुवरिहिसुत्तमागदं-
खेत्तेण अनंताणंता लोगा ॥ २७ ॥
एदेण जहण्णअणंताणंतस्स पडिसेहो कदो । कुदो ? तत्थ अणंताणंत लोगाणमभावादो । एदं पि कथं गव्वदे ? लोगेण जहण्णे अणंताणंते भागे हिदे लम्मि अनंता
तिर्यंच जीव कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियों से अपहृत नहीं होते हैं ॥ १६ ॥
शंका- तिर्येच जीव अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे क्यों नहीं अपहृत होते ?
समाधान - क्योंकि, यहां केवल अतीत कालका ग्रहण किया गया है । (देखो जीवस्थान द्रव्य प्रमाणानुगम, पृ. २९ ) ।
शंका- - अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे इनके अपहृत होनेपर कौनसा दोष उत्पन्न होता है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि ऐसा होनेपर सब भव्य जीवोंके व्युच्छेदका प्रसंग
आता है ।
इस सूत्र के द्वारा परीतानन्त और युक्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है । अनन्तानन्त भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेद से तीन प्रकार है । उनमें से इस अनन्तानन्तमें तिर्यच जीव स्थित हैं, इसके ज्ञापनार्थ उपरिम सूत्र प्राप्त होता है
तिर्यंच जीव क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण हैं ।। १७ ।
इस सूत्र के द्वारा जघन्य अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, जघन्य अनन्तानन्तमें अनन्तानन्त लोकोका अभाव है ।
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शंका
- यह भी कैसे जाना जाता है ?
समाधान- क्योंकि, लोकका जघन्य अनन्तानन्तमें भाग देने पर लब्ध राशिमें
१ प्रतिषु ' संखेसि' इति पाठः ।
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