________________
२४६] छक्खंडागमै खुद्दाबंधो
[२, ५, ६. पयारमिदि तण्णिण्णयट्टमुसरसुत्तं भणदि____ तासि सेडीणं विक्खंभसूची अंगुलवग्गमूलं बिदियवग्गमूलगुणिदेण ॥६॥
सूचिअंगुलपढमवग्गमूले सूचिअंगुलस्स विदियवग्गमूलेण गुणिदे तासिं सेडीणं विक्खंभसूची होदि । गुणिदेणेत्ति णेदं तदियाए एगवयणं, किंतु सत्तमीए एगवयणेण पढमाए एगवयणेण वा होदव्वमण्णहा सुत्तट्ठसंबंधाभावादो। एत्थ सामण्णणेरइयाणं वुत्तविक्खंभसूची चेव णेरइयमिच्छाइट्ठीणं जीवट्ठाणे परूविदा, कधं तेणेदं ण विरुज्झदे ? ण विरुज्झदे, आलावभेदाभावादो । अत्थदो पुण भेदो अस्थि चेव, सामण्ण-विसेसविक्खंभसूचीणं समाणत्तविरोहादो। मिच्छाइटिविक्खंभसूची संपुण्णघणंगुलबिदियवग्गमूलमेत्ता किण्ण घेप्पदे ? ण, सामण्णणेरइयाणं परूविदघणंगुलबिदियवग्गमूलविक्खंभसूचिणा एदेण खुद्दाबंधसुत्तेण सह विरोहादो। ण तं पि सुत्तमिदि पच्चवट्ठादुं जुत्तं, खुद्दाबंधुवख्यातासंख्यात भी अनेक प्रकार है, अतः उसके निर्णयार्थ उत्तरसूत्र कहते हैं
__ उन जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे गुणित उसीके प्रथम वर्गमूलप्रमाण है ॥ ६ ॥
__ सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे गुणित करनेपर उन जगभ्रेणियोंकी विष्कम्भसूची होती है। यहां सूत्रमें 'गुणिदेण' यह पद तृतीयाका एकवचन नहीं है, किन्तु सप्तमीका एक वचन या प्रथमाका एक वचन होना चाहिये; अन्यथा सूत्रके अर्थका सम्बन्ध नहीं बैठता ।
शंका-यहां जो सामान्य नारकियोंकी विष्कम्भसूची कही गई है वही जीवस्थानमें नारकी मिथ्यादृष्टियोंकी कही गई है, उसके साथ यह विरोधको कैसे न प्राप्त होगा?
समाधान-जीवस्थानसे इस कथनका कोई विरोध न होगा, क्योंकि यहां आलापभेदका अभाव है। परमार्थसे तो भेद है ही, क्योंकि, सामान्य व विशेष विष्कम्भसूचियोंमें समानताका विरोष है।
शंका-मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कम्भसूर्चा सम्पूर्ण धनांगुलके द्वितीय वर्गमूलप्रमाण क्यों नहीं ग्रहण करते?
समाधान-नहीं, क्योंकि वैसा माननेपर उसका सामान्य नारकियोंकी धनां. गुलके द्वितीय वर्गमूलमात्र विष्कम्भसूचीको प्ररूपित करनेवाले इस क्षुद्रबन्धसूत्रके साथ बिरोध होगा। वह भी तो सूत्र है इस प्रकार विरोध उत्पन्न करना भी उचित नहीं है,
१ प्रतिषु पदमाए बयण ' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org