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२, ५, ५.] दव्वपमाणाणुगमे गैरइयाणं पमाणं
(२१५ असंखेज्जासंखेज्जाहि त्ति वयणेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो, असंखेज्जासंखेज्जस्सेव उवलद्धी जादो, 'असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि समयभावसलागभूदाहि णेरइया अवहिरंति' त्ति वयणादो । तं पि असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णमुक्कस्सं तव्वदिरित्तमिदि तिविहं । तत्थ एदम्हि असंखेज्जासंखेज्जे णेरड्या अवट्टिदा त्ति जाणावणटुं खेत्तपरूवणमागदं
खेत्तेण असंखेज्जाओ सेडीओ ॥४॥
'असंखेज्जाओ सेडीओ ति सुत्तेण जहण्णअसंखेज्जासंखेज्जपडिसेहो कदो, तत्थ असंखेज्जाणं सेडीणमभावादो। उक्कस्स-मज्झिमअसंखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो ण होदि, तत्थ असंखेज्जाणं सेडीणं संभवादो । एदेसु दोसु असंखेज्जासंखेज्जेसु णेरइया कम्हि अवडिदा त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तमागदं
पदरस्स असंखेज्जदिभागो ॥५॥
एदेण सुत्तेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो, पदरस्सासंखेज्जदिभागस्स उक्कस्सासंखेज्जासंखेज्जत्तविरोहादो। तं पि मज्झिममसंखेज्जासंखेज्जयमणेय
'असंख्यातासंख्यात' इस वचनसे परीतासंख्यात और युक्तासंख्यातका प्रतिषेध किया जिससे केवल असंख्यातासंख्यातकी ही प्राप्ति हुई, क्योंकि, 'समयभावशलाकाभूत असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे नारकी जीव अपहृत होते हैं ' ऐसा वचन है । वह असंख्यातासंख्यात भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है । उनमेंसे इस असंख्यातासंख्यातमें नारकी जीव अवस्थित है इसके ज्ञापनार्थ क्षेत्रप्ररूपणा प्राप्त होती है।
क्षेत्रकी अपेक्षा नारकी जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं ॥४॥
'असंख्यात जगभेणियां' इस प्रकारके सूत्रसे जघन्य असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, जन्घय असंख्यातासंख्यातमें असंख्यात जगश्रेणियोंका अभाव है। परन्तु इससे उत्कृष्ट और मध्यम असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध नहीं होता, क्योंकि, उनमें असंख्यात जगश्रेणियां संभव हैं । अतः इन दो असंख्यातासंख्यातोर्मेसे नारकी जीव कौनसे असंख्यातासंख्यातमें अवस्थित हैं, इसके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र प्राप्त
होता है
उक्त नारकी जीव जगप्रतरके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण
इस सूत्रसे उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, जगप्रतरके असंख्यातवें भागका उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातत्वसे विरोध है । वह मध्यम असं
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