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देव्वपमाणानुगमो
दव्वपमाणाणुगमेण गढ़ियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइया दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १ ॥
दाओ मग्गणाओ सव्वकालमत्थि एदाओ च सव्वकालं णत्थि त्ति णाणाजीवभंगविचयाणुगमेण जाणाविय संपहि तासु मग्गणासु द्विदजीवाणं पमाणपरूवणटुं दव्वाणिओगद्दारमा गदं । णिरयगदिवयणेण सेसगदीणं पडिसेहो कओ । रइया ि वयण णिरयगसंबद्धणेरइयवदिरित्तदव्वादीणं पडिसेहो कओ । दव्यपमाणेण वियणेण खेत्तपमाणादीणं पडिसेहो कओ । केवडिया इदि आसंका आइरियस्स ।
असंखेज्जा ॥ २ ॥
संखेज्जाणताणं पडिसेहट्टमसंखेज्जवयणं । एदं पि तिविहं असंखेज्जं । तत्थ एहि असंखेज्जे रइयरासी ठिदो त्ति जाणावणट्टमुत्तरमुत्तं भणदिअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि- उस्सप्पिणीहि अवहिरंति काले ॥ ३ ॥
द्रव्यप्रमाणानुगम से गतिमार्गणानुसार नरकगतिकी अपेक्षा नारकी जीव द्रव्यमाणसे कितने हैं ? ॥ १ ॥
" ये मार्गणायै सर्वकाल हैं और ये मार्गणायें सर्वकाल नहीं है ' इस प्रकार नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयानुगमसे जतलाकर अब उन मार्गणाओं में स्थित जीवोंके प्रमाणके निरूपणार्थ द्रव्यानुयोगद्वार प्राप्त होता है । नरकगतिके वचन से शेष गतियोंका प्रतिषेध किया है । 'नारकी' इस वचनसे नरकगतिसे सम्बद्ध नारकियोंके अतिरिक्त अन्य द्रव्यादिकों का प्रतिषेध किया है। 'द्रव्यप्रमाणसे' इस प्रकारके वचनसे क्षेत्रप्रमाणादिकोंका प्रतिषेध किया है । ' कितने हैं' इस प्रकार यह आचार्यकी आशंका है ।
नारकी जीव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ २ ॥
संख्यात व अनन्तके प्रतिषेधके लिये ' असंख्यात ' वचन है । यह असंख्यात भी तीन प्रकार है । उनमें से इस असंख्यातमें नारकराशि स्थित है, इस बातके ज्ञापनार्थ उत्तरसूत्र कहते हैं -
कालकी अपेक्षा नारकी जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणबोंसे अपहृत होते हैं । ३ ॥
१ अ-काप्रत्योः ' ओसप्पिणि उस्सप्पिणी ' इति पाठः ।
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