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________________ २१२ छक्खंडागमै खुदाबंधो [२, ३, ७७. गयस्स जहाकमेण अद्वहि सत्तहि अंत्तोमुहुत्तेहि ऊणअद्धपोग्गलपरियट्टमेत्ततरुवलंभादो । कम्मइयकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ७७॥ सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं ॥ ७८ ॥ तिण्णि विग्गहे काऊण खुद्दाभवग्गहणम्मि उप्पज्जिय पुणो विग्गहं काऊण णिग्गयस्स तिसमऊणखुद्दाभवग्गहणमेत्ततरुवलंभादो । उकस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्साप्पिणीओ॥ ७९ ॥ कुदो ? कम्मइयकायजोगादो ओरालियमिस्सं वेउब्धियमिस्सं वा गंतूण असंखेजासंखेज्जओसप्पिणी-उस्सप्पिणीपमाणमंगुलस्स' असंखेजदिभागमेत्तकालमाच्छिय विग्गहं होगया। ऐसे जीवके यथाक्रम आठ या सात अर्थात् आहारककाययोगका आठ और आहार कमिश्रकाययोगका सात अन्तर्मुहर्तसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तमात्र अन्तरकाल पाया जाता है। कार्मिककाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ७७ ॥ यह सूत्र सुगम है। कार्मिककाययोगियोंका जघन्य अन्तर तीन समय कम क्षुद्र भवग्रहणमात्र होता क्योंकि, तीन विग्रह करके क्षुद्रभवग्रहणवाले जीवों में उत्पन्न हो पुनः विग्रह करके निकलनेवाले जीवके तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र कार्मिककाययोगका जघन्य अन्तर प्राप्त होता है। कार्मिककाययोगियोंका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल तक होता है ।। ७९ ॥ क्योंकि, कार्मिककाययोगसे औदारिकमिश्र अथवा वैक्रियिकमिश्र काययोगमें जाकर असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीप्रमाण अंगुलके असंख्यातवें भागमात्र काल तक रहकर पुनः विग्रहगतिको प्राप्त हुए जीवके कार्मिककाययोगका सूत्रोक्त अन्तर .................... १ अप्रती । ओस पिणी-उस्सविणीओ पमाणअंगुलस्स'; आप्रती । ओसपिणि-उस्सारिणीपमाणअंगु. लस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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