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२, ३, ७६.) एगजीवेण अंतराणुगमे आहारकायजोगीणमंतर [२११ आहारकायजोगं गदस्स अंतोमुहुत्ततरुवलंभादो । एगसमओ किण्ण लम्भदे ! ण, आहारकायजोगस्स वाघादाभावादो । एवमाहारमिस्सकायजोगस्स वि वत्तव्वं । णवरि आहारसरीरमुट्ठाविय सव्वजहण्णेण कालेण पुणो वि उट्ठावेतस्स पढमसमए अंतरपरिसमत्ती कायव्या।
उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टं देसूणं ॥ ७६ ॥
कुदो ? अणादियमिच्छादिहिस्स अद्धपोग्गलपरियट्टादिसमए उवसमसम्मत्तं संजमं च जुगवं घेत्तण अंतोमुहुत्तमच्छिय (१) अप्पमत्तो होदण (२) आहारसरीरं बंधिय (३) पडिभग्गो होदण (४) आहारसरीरमुट्टाविय अंतोमुहुत्तमच्छिय () आहारकायजोगी होदूण आदि करिय एगसमयमच्छिय कालं काऊण अंतरिय उवड्पोग्गलपरियाई भमिय अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे अद्धमंतरं करिय (६) अंतोमुहुत्तमच्छिय (७) अबंधभावं
पुनः आहारककाययोगको प्राप्त हुए जीवके आहारककाययोगका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तर पाया जाता है।
शंका- आहारकाययोगका एक समयमात्र अन्तर क्यों नहीं प्राप्त हो सकता?
समाधान नहीं हो सकता, क्योंकि, आहारकाययोगका व्याघात नहीं हो सकता।
इसी प्रकार आहारमिश्रकाययोगका अन्तर भी कहना चाहिये । केवल विशेषता यह है कि आहारशरीरको उत्पन्न करके सबसे कम कालमें पुनः आहारशरीरको उठानेके प्रथम समयमें अन्तरकी समाप्ति करदेना चाहिये।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण होता है ॥ ७६ ॥
__ क्योंकि, एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीवने अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण संसार शेष रहनेके आदि समयमें उपशमसम्यक्त्व और संयम इन दोनोंको एक साथ ग्रहण किया
और अन्तर्मुहूर्त रहकर (१) अप्रमत्त होकर (२) आहारशरीरका बंध करके (३) प्रतिभन्न अर्थात् अप्रमत्तसे च्युत हो प्रमत्त होकर (४) आहारशरीरको उत्पन्न करके अन्तर्मुहूर्त रहा (५) और आहारकाययोगी होकर उसका प्रारंभ करके व एक समय रहकर मर गया । इस प्रकार आहारकाययोगका अन्तर प्रारंभ हुआ। पश्चात् वही जीव उपार्धपुदलपरिवर्तन भ्रमण करके संसारके अन्तर्मुहूर्तमात्र शेष रहनेपर अन्तरकाल समाप्त कर अर्थात् पुनः आहारशरीर उत्पन्न कर (६) अन्तर्मुहूर्त रहकर (७) अबंधकभावको प्राप्त
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