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२१०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ३, ७३. गदस्स सादिरेयदसवस्ससहस्समेत्ततरुवलंभादो। कधमेदेसि सादिरेयत्तं ? ण, वेउब्धियमिस्सद्धादो तिरिक्ख-मणुस्सपज्जत्ताणं गब्भजाणं जहण्णाउवस्स बहुत्तुवलंभादो ।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियटुं ॥७३॥
कुदो ? वेउब्वियमिस्सकायजोगादो वेउब्धियकायजोगं गंतूणंतरिय असंखेज्जपोग्गलपरियट्टणाणि परियट्टिय वेउब्बियमिस्सं गदस्स तदुवलंभादो ।
आहारकायजोगि---आहारमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ७४॥
सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७५॥ कुदो ? आहारकायजोगादो अण्णजोगं गंतूण सब्बलहुमंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो
हुए जीवके सातिरेक दश हजार वर्षप्रमाण वैक्रियिकमिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर पाया जाता है।
शंका-इन दश हजार वर्षोंके सातिरेकता कैसे है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वैक्रियिकमिश्रयोगके कालकी अपेक्षा तिर्यंच व मनुष्य पर्याप्त गर्भज जीवोंकी जघन्य आयु बहुत पायी जाती है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल है ॥ ७३ ॥
क्योंकि, वैक्रियिकमिश्रकाययोगसे वैक्रियिककाययोगमें जाकर, वैक्रियिकमिश्रकाययोगका अन्तर प्रारंभ कर, असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन परिभ्रमण कर पुनः वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें जानेवाले जीवके सूत्रोक्त प्रमाण अन्तर पाया जाता है।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ।। ७४ ॥
यह सूत्र सुगम है।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त होता है । ७५ ॥
क्योंकि, आहारककाययोगसे अन्य योगको जाकर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त रहकर
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