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२, ३, ५४.]
एगजीवेण अंतराणुगमे बादरवणप्फदिकाइयाणमंतर
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सुगम ।
जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥५१॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥५२॥
कुदो ? अप्पिदवणफदिकायादो णिग्गयस्स अणप्पिदपुढवीकायादिसु चव हिंडंतस्स असंखेज्जलोगं मोत्तूण अण्णस्स अंतरस्स असंभवादो । सेसं सुगम।।
बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ५३॥
सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥५४॥ एदं पि सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम क्षुद्र भवग्रहणमात्र काल तक उक्त वनस्पतिकायिक निगोद जीवोंका अन्तर होता है ॥ ५१ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक असंख्यात लोकप्रमाण काल तक उक्त वनस्पतिकायिक निगोद जीवोंका अन्तर होता है ।। ५२ ॥
क्योंकि, विवक्षित वनस्पतिकायसे निकलकर अविवक्षित पृथिवीकायादिकों में ही भ्रमण करनेवाले जीवके असंख्यात लोकप्रमाण कालको छोड़कर अन्य प्रमाण अन्तर होना असंभव है । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ५३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंका अन्तर होता है ॥ ५४ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
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