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________________ २, ३, ४०.] एगजीवेण अंतराणुगमे बादरएइंदियाणमंतर ___ कुदो ? एइंदिएहितो णिग्गयस्स तसकाइएसु चेव भमंतस्स पुयकोडिपुधत्तमहियबेसागरोवमसहस्समेत्ततसद्विदीदो उवरि तत्थ अवट्ठाणाभावादो । बादरएइंदिय-पज्जत्त-अपजत्ताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ३८ ॥ सुगममेदमासंकासुतं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ३९ ॥ सुगमं । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ ४०॥ कुदो ? बारेइंदिएहितो णिग्गंतूण सुहुमेइंदिएसु असंखेज्जलोगमेत्तकालादो उपरि अवट्ठाणाभावादो । होदु णाम एदमंतरं बादरेइंदियाणं, ण तेसिं पज्जत्ताणमपजत्ताणं च, सुहुमेइंदिएसु अणप्पिदबादरेइंदिएसु च परियस॒तस्स पुचिल्लंतरादो अइमहल्लंतरु क्योंकि, एकेन्द्रिय जीवों में से निकल कर केवल त्रसकायिक जीवोंमें ही भ्रमण करनेवाले जीवके पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागरोपममात्र स्थितिसे ऊपर त्रसकायिकोंमें रहनेका अभाव है। ___ बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त व बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका अपनी गतिसे अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ३८ ॥ यह आशंकासूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल तक उक्त एकेन्द्रिय जीवोंका अन्तर होता है ॥ ३९ ॥ यह सूत्र सुगम है। अधिकसे अधिक असंख्यात लोकप्रमाण काल तक उक्त एकेन्द्रय जीवोंका अन्तर होता है ॥ ४० ॥ ___ क्योंकि, बादर एकेन्द्रिय जीवों से निकलकर सूक्ष्म एकेन्द्रियों में असंख्यात लोकप्रमाण कालसे ऊपर रहना संभव नहीं है । शंका-यह असंख्यात लोकप्रमाण कालका अन्तर बादर एकेन्द्रिय (सामान्य) जीवोंका भले ही हो पर यह अन्तरप्रमाण पृथक् पृथक् बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकों व अपर्याप्तकोंका नहीं हो सकता, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें तथा अविवक्षित (पर्याप्त या अपर्याप्त) वादर एकेन्द्रियों में जब जीव परिभ्रमण करता है, तब पूर्वोक्त अन्तरसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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