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१९२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ३, १७. __ कुदो ? सणक्कुमार-माहिंददेवाणं तिरिक्ख-मणुस्साउअं बंधमाणाणमाउअस्स जहण्णट्ठिदीए मुहुत्तपुधत्तपमाणत्तादो । तिरिक्ख-मणुस्साउअं जहण्णेण मुहुत्तपुधत्तमेत्तं बंधिय तिरिक्खेसु मणुस्सेसु वा उप्पज्जिय परिणामपच्चएण पुणो सणक्कुमार-माहिंदेमु आउअं बंधिय सणक्कुमार-माहिदेसुप्पण्णाणं जहण्णमंतरं होदि त्ति वुत्तं होदि ।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ १७ ॥ सुगमं ।
बम्हबम्हुत्तर-लांतवकाविट्ठकप्पवासियदेवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥१८॥
सुगमं ।
जहण्णेण दिवसपुधत्तं ॥ १९ ॥ कुदो ? एदेहि बज्झमाणआउअस्स दिवसपुधत्तादो हेट्ठा विदिबंधाभावादो ।
क्योंकि, तिर्यंच या मनुष्य आयुको बांधनेवाले सनत्कुमार और माहेन्द्र देवाके तिर्यंच व मनुष्य भवसम्बन्धी जघन्य स्थितिका प्रमाण मुहूर्तपृथक्त्व पाया जाता है। इसी मुहूर्तपृथक्त्वप्रमाण जघन्य तिर्यंच व मनुष्य आयको बांध कर तिर्यंचोंमें व मनुष्योंमें उत्पन्न होकर परिणामोंके निमित्तसे पुनः सनत्कुमार-माहेन्द्र देवोंकी आयु बांधकर सनत्कुमार-माहेन्द्र देवों में उत्पन्न हुए जीवोंका मुहूर्तपृथक्त्वप्रमाण जघन्य अन्तर होता है ऐसा सूत्र द्वारा बतलाया गया है ।
ण अनन्त काल तक सनत्कुमार और माहेन्द्र देवोंका देवगतिसे अन्तर होता है ॥ १७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर व लान्तव-कापिष्ठ कल्पवासी देवोंका देवगतिसे अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ १८ ॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम दिवसपृथक्त्वमात्र ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर और लान्तव-कापिष्ठ कल्पवासी देवोंका अपनी देवगतिसे अन्तर होता है ॥ १९ ॥
क्योंकि, उक्त देवों द्वारा जो आगामी भवकी आयु बांधी जाती है उसका स्थितिबन्ध दिवसपृथक्त्वसे कम होता ही नहीं हैं।
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