SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २, २, २१६.] एगजीवेण कालाणुगमे आहारि-अणाहारिकालपरूवणं [१८५ उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणी-उस्साप्पिणीओ ॥ २१२॥ कुदो ? विग्गहं काऊण आहारी होदण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमसंखेज्जासंखेज्जाओसप्पिणि-उस्सप्पिणिकालमेत्तं परिभमिय कयविग्गहस्स तदुवलंभादो। ५. अणाहारा केवचिरं कालादो होति ? ॥२१३॥ सुगमं । जहण्णेणेगसमओ ॥२१४॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण तिणि समया ॥ २१५ ॥ समुग्धादगयसजोगिम्हि तिण्णिविग्गहकयजीवे वा तदुवलंभादो । अंतोमुहुत्तं ॥२१६॥ अजोगिम्हि अणाहारिस्स अंतोमुहुत्तकालुवलंभादो । बंधगाणमेसो कालो वुत्तो, अधिकसे अधिक अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल तक जीव आहारक रहते हैं ।। २१२ ॥ क्योंकि, विग्रह करके आहारक हो, अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल मात्र परिभ्रमण कर विग्रह करनेवाले जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है। जीव अनाहारक कितने काल तक रहते हैं ? ॥ २१३ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव अनाहारक रहते हैं ॥ २१४ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। अधिकसे अधिक तीन समय तक जीव अनाहारक रहते हैं ॥ २१५ ॥ क्योंकि, समुद्घात करनेवाले सयोगिकवली व तीन विग्रह करनेवाले जीवके अनाहारत्वका तीन समयप्रमाण काल पाया जाता है। अधिकसे आधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक भी जीव अनाहारक रहते हैं ॥ २१६ ॥ क्योंकि, अयोगिकेवलोके अनाहारकका अन्तर्मुहूर्त काल पाया जाता है। शंका-यह कालप्ररूपणा बन्धक जीवोंकी अपेक्षा की गई है, किन्तु अयोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy