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१८२) छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, २, १९९. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९९ ॥ सुगममेदं । सासणसम्माइट्ठी केवचिरं कालादो होति ? ॥ २० ॥ सुगमं । जहण्णेण एयसमओ ॥ २०१ ॥
उवसमसम्मसद्धाए एगसमयावसेसे सासणं गदस्स सासणगुणस्स एगसमयकालोवलंभादो । जेत्तिया . उवसमसम्मत्तद्धा एगसमयमादि कादण जावुक्कस्सेण छावलियाओ त्ति अबसेसा अस्थि तत्तिया चेव सासणगुणद्धावियप्पा होति । उवसमसम्मत्तकालं संपुण्णमच्छिदो सासणगुणं ण पडिवज्जदित्ति कधं णव्यदे? एदम्हादो चेव सुत्तादो, आइरियपरंपरागदुवदेसादो च । )
उक्कस्सेण छावलियाओ ॥ २०२ ॥ सुगमं ।
अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव उपशमसम्यग्दृष्टि व सम्यग्मिध्यादृष्टि रहते हैं ॥ १९९ ॥
यह सूत्र सुगम है। जीव सासादनसम्यग्दृष्टि कितने काल तक रहते हैं ? ॥ २० ॥ यह मूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव सासादनसम्यग्दृष्टि रहते हैं ।। २०१॥
क्योंकि, उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रहनेपर सासादान गुणस्थानमें जानेवाले जीवके सासादन गुणस्थानका एक समय काल पाया जाता है। एक समयसे प्रारम्भ कर अधिकसे अधिक छह आवलियों तक जितना उपशमसम्यक्त्वका काल शेष रहता है, उतने ही सासादनगुणस्थानकालके विकल्प होते हैं।
शंका-जो जीव उपशमसम्यक्वक संपूर्ण काल तक उपशमसम्यक्त्वमें रहा है वह सासादन गुणस्थानमें नहीं जाता, यह कैसे जाना?
समाधान-प्रस्तुत सूत्रसे ही तथा आचार्यपरम्परागत उपदेशसे भी पूर्वोक्त बात जानी जाती है।
अधिकसे अधिक छह आवली काल तक जीव सासादनसम्यग्दृष्टि रहते हैं ॥२०२॥ यह सूत्र सुगम है।
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