________________
१७३ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २. १८३. कुदो ! तेउ पम्म-सुक्कलेस्साहि सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तमेत्तमच्छिय पुणो जहाकमेण अड्डाइज्ज साद्धट्ठारस-तेत्तीससागरोवमाउद्विदिएसु देवेसुप्पज्जिय अवविदलेस्साहि सगसगाउहिदिमणुपालिय तत्तो चविय अंतोमुहुत्तकालं ताहि चेव लेस्साहि अच्छिय अविरुद्धलेस्संतरं गयस्स सगसगुक्कस्सकालाणमुवलंभादो ।
भवियाणुवादेण भावसिद्धिया केवचिरं कालादो होंति ? ॥१८३॥
सुगमं ।
अणादिओ सपज्जवसिदो ॥ १८४ ॥
कुदो ? अणाइसरूवणागयस्स भवियभावस्स अजोगिचरिमसमए विणासुवलंभादो । अभवियसमाणो वि भवियजीवो अत्थि त्ति अणादिओ अपज्जयसिदो भवियभावो किण्ण परूविदो ? ण, तत्थ अविणाससत्तीए अभावादो। सत्तीए चेव एत्थ अहियारो, वत्तीए
क्योंकि, तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याओं सहित सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तमात्र रहकर पुनः यथाक्रमसे अढ़ाई, साहे अठारह व तेतीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवों में उत्पन्न होकर अवस्थित लेश्याओं सहित अपनी अपनी आयुस्थितिको पूरी करके वहांस निकल कर अन्तर्मुहूर्त काल तक उन्हीं लेश्याओं सहित रहकर अन्य अविरुद्ध लेश्यामें गये हुए जीवके उक्त लेश्याओंका अपना अपना उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है।
भव्यमार्गणानुसार जीव भव्यसिद्धिक कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १८३ ॥ यह सूत्र सुगम है। जीव अनादि सान्त भव्यसिद्धिक होता है ।। १८४ ॥
क्योंकि, अनादि स्वरूपसे आये हुए भन्यभावका अयोगिकेवलीके अन्तिम समयमें विनाश पाया जाता है।
शंका- अभव्यके समान भी तो भव्य जीव होता है, तब फिर भव्यभावको अमादि और अनन्त क्यों नहीं प्ररूपण किया ?
समाधान नहीं किया, क्योंकि भव्यत्वमें अविनाश शक्ति का अभाव है। अर्थात् यद्यपि अनादिसे अनन्त काल तक रहनेवाले भव्य जीव हैं तो सही, पर उम में शक्ति रूपसे तो संसारविनाशकी संभावना है, अविनाशत्वकी नहीं।
शंका-यहां भव्यत्वशक्तिका अधिकार है, उसकी व्यक्तिका नहीं, यह कैसे
१ प्रतिषु 'भविय' इति पाठः ।
२ प्रतिषु · अहियाराबवत्तीए ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org