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________________ १७० छक्खंडागमे खुद्दाबंधो . [२, २, १५९. सुगमं । उवसमं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥ १५९ ॥ कुदो ? सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदस्स उवसंतकसायत्तं पडिवज्जिय एगसमयमच्छिय विदियसमए मुदस्स एगसमओवलंभादो । उस्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ १६०॥ कुदो ? उवसंतकसायस्स अंतोमुहुत्तादो अहियकालाभावा । खवगं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १६१ ॥ कुदो ? खवगसेडिं चडिय खीणकसायट्ठाणे जहाक्खादसंजमं पडिवज्जिय सजोगी होदूण अंतोमुहुत्तेण अबंधगत्तं गदस्स तदुवलंभादो । उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ॥ १६२ ॥ कुदो ? गम्भादिअट्ठवस्साणि गमिय संजमं घेत्तूण सबलहुएण कालेण मोहणीय यह सूत्र सुगम है। उपशमकी अपेक्षा कमसे कम एक समय तक जीव यथाख्यातविहारशुद्धि संयत रहते हैं ॥१५९ ॥ क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतके उपशान्तकषायत्वको प्राप्त होकर और एक समय रहकर द्वितीय समयमें मरण करनेपर एक समय काल पाया जाता है। अधिकसे अधिक अन्तर्मुहुर्त काल तक जीव यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत रहते हैं ॥ १६०॥ क्योंकि, उपशान्तकषायका अन्तर्मुहूर्तसे अधिक काल है ही नहीं। क्षपककी अपेक्षा कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत रहते हैं ॥ १६१ ॥ क्योंकि, क्षपकश्रेणीपर चढ़कर क्षीणकषाय गुणस्थानमें यथाख्यातसंयमको प्राप्त कर और फिर सयोगी होकर अन्तर्मुहूर्तसे अबन्धक अवस्थाको प्राप्त हुए जीवके वह सूत्रोक्त काल पाया जाता है। अधिकसे अधिक कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष तक जीव यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत रहते हैं ॥ १६२॥ क्योंकि, गर्भादि आठ वर्षोंको विताकर संयमको प्राप्त कर, सर्पलघु कालसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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