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________________ १५८ 1 छक्खंडागमै खुदाबंधौ । [२, २, १२०. एदमेत्थ सदपुत्तमिदि गहिदं । णqसयवेदा केवचिरं कालादो होति ? ॥ १२० ॥ सुगमं । जहण्णेण एगसमओ ॥ १२१ ॥ णqसयवेदोदएण उवसमसेडिं चडिय ओदरिय सवेदो हादूग बिदियसमए कालं करिय पुरिसवेदं गदस्स एगसमयदसणादो । पुरिसवेदस्स एगसमओ किण्ण लद्धो ? ण, अवगदवेदो होदूण सवेदजादविदियसमए कालं करिय देवेसुप्पण्णो वि पुरिसवेदं मोत्तण अण्णवेदस्सुदयाभावेण एगसमयाणुवलंभादो । उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ १२२ ॥ अणप्पिदवेदा णqसयवेदयं गंतूण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेनपोग्गलपरियट्टे परियट्टिदृण अण्णवेदं गदस्स तदुवलद्धीदो । है। २.०० सागरोपम यहां शतपृथक्त्वसे ग्रहण किये गये हैं। जीव नपुंसकवेदी कितने काल तक रहते हैं ? ।। १२० ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव नपुंसकवेदी रहते हैं ॥ १२१ क्योंकि, नपुंसकवेदके उदयसे उपशमश्रृंगी चढ़कर, फिर उतरकर, सवेद होकर और द्वितीय समयमें मरकर पुरुषवेदको प्राप्त हुए जीवके नपुंसकवेदका कमसे कम एक समय काल देखा जाता है। .. शंका -पुरुषवेदका जघन्य काल एक समय क्यों नहीं पाया जाता? __ समाधान नहीं पाया जाता, क्योंकि, अपगतवेद होकर और सवेद होने के द्वितीय समयमें मरकर देवोंमें उत्पन्न होनेपर भी पुरुषवेदको छोड़कर अन्य वेदके उदयका अभाव होनेसे एक समय काल नहीं पाया जाता। अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक जीव नपुंसकवेदी रहते हैं ॥ १२२ ।।।। क्योंकि, अविवक्षित चेदसे नपुंसक वेदको प्राप्त होकर और आवलीके असंख्यात भागमात्र पुद्गलपरिवर्तन परिभ्रमण करके अन्य वेदको प्राप्त हुए जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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