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२, २, ११९. ] एगजीवेण कालागइत्थवेदादिकाल
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अवे' गो । सदपुधत्तमिदि किं । तिसदप्पहुडि जाव णवसदाणि त्ति एदे सव्वविपा सदधतमिदि वुच्चति ।
पुरिसवेदा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ११७ ॥
सुगमं ।
जहणेण अंतमुत्तं ॥ ११८ ॥
पुरिसवेदोदएण उवसम सेडिं चढिय अवगदवेदो होदूण पुणो उवसमसेडीदे। ओदरमाणो सवेदो होतॄण वेदस्स आदि करिय सव्वजहणमंतोमुहुत्तममच्छिय पुणेो उवसमसेटिं चढिय अवगदवेदभावं गदम्मि पुरिसवेदम्स अंतोमुहुत्तमेत्तकालस्सुवलंभादो । उक्कस्सेण सागरोवमसदपुत्तं ॥ ११९ ॥
वेदम्म अतकालभसंखेज्जलोगमेत्तं वा अच्छिय पुरिसवेदं गंतॄण तमछंडिय सागरोवमसदपुधत्तं तत्थेव परिममिय अण्णवेदं गदस्स तदुवलं भादो | | 800 1
तक उसमें ही परिभ्रमण करके पश्चात् अन्य वेदको प्राप्त हुआ ।
शंका- शतपृथक्त्व किसे कहते हैं ?
समाधान - तीन सौसे लेकर नौ सौ तक ये सब विकल्प ' शतपृथक्त्व कहे जाते हैं ।
जीव पुरुषवेदी कितने काल तक रहते हैं ? ।। ११७ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव पुरुषवेदी रहते हैं ।। ११८ ॥
पुरुपवेद के उदयसे उपशमश्रेणी चढ़कर, अपगतवेदी होकर, पुनः उपशमश्रेणी से उतरता हुआ सवेद होकर, वेदका आदि करके, सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर, और फिर उपशमश्रेणी चढ़कर अपगतवेदत्वको प्राप्त हुए जीवके पुरुषवेदका अन्तर्मुहूर्त काल पाया जाता है ।
अधिक से अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व काल तक जीव पुरुषवेदी रहते हैं ।। १५९ ॥ .
नपुंसक वेद में अनन्त काल अथवा असंख्यात लोकमात्र काल तक रहकर पुरुषवेदको प्राप्त होकर और फिर उसे न छोड़कर सागरोपमशतपृथक्त्व काल तक उसमें ही परिभ्रमण करके अन्य वेदको प्राप्त हुए जीवके वह सूत्रोक्त काल पाया जाता
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१ अ. आप्रत्योः अप्णावेदं इति पाठः ।
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