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_ छक्खंडागमे खुदाबंधी
[२, २, ११२.
सुगमं ।
जहण्णेण एगसमओ ॥ ११२ ॥ एगविग्गहं कादूण उप्पण्णस्स तदुवलंभादो । उक्कस्सेण तिण्णि समया ॥ ११३ ॥ तिहं समयाणमुवरि विग्गहाणुवलंभादो । वेदाणुवादेण इत्थिवेदा केवचिरं कालादो होति ?॥ ११४ ॥ सुगमं ।
जहण्णेण एगसमओ ॥ ११५॥ उवसमसेडीदो ओदरिय सवेदो होदूण बिदियसमए मुदस्स पुरिसवेदेण परिणयम्स एगसमओवलंभादो ।
उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं ॥ ११६ ॥ अणप्पिदवेदादो इस्थि वेदं गंतूण पलिदोवमसदपुधत्तं तत्येव परिभामिय पच्छा
यह सूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव कार्मणकाययोगी रहता है ॥ ११२ ॥
क्योंकि, एक विग्रह ( मोड़ा) करके उत्पन्न हुए जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
अधिकसे अधिक तीन समय तक जीव कार्मणकाययोगी रहता है ॥ ११३ ॥ क्योंकि, तीन समयोंके ऊपर विग्रह पाये नहीं जाते। वेदमार्गणानुसार जीव स्त्रीवेदी कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ११४ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव स्त्रीवेदी रहता है ॥ ११५ ॥
क्योंकि, उपशमश्रेणीसे उतरकर सवेद होते हुए द्वितीय समयमें मृत्युको प्राप्त होकर पुरुषवेदसे परिणत हुए जीवके एक समय पाया जाता है।
अधिकसे अधिक पल्योपमशतपृथक्त्व काल तक जीव स्त्रीवेदी रहता
जीव अविवक्षित वेद से स्त्रीषदको प्राप्त होकर और पल्योपमशतपृथक्त्व काल
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