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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, २, ७३. जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ७३ ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ ७४ ॥
अणप्पिदकायादो आगंतूण अप्पिदकायम्मि समुप्पन्जिय असंखेज्जलागमेत्तकालं तत्थ परियट्टिय णिग्गयम्मि तदुवलंभादो ।
बादरपुढवि-बादरआउ-बादरतेउ-बादरवाउ-वादरवणप्फदिपत्तेय-- सरीरा केवचिरं कालादो होति ? ॥ ७५॥
सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ७६ ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण कम्मट्टिदी ॥ ७७ ॥
कमसे कम क्षुद्र भवग्रहण काल तक जीव पृथिवीकायिक, अपकायिक, तेजकायिक व वायुकायिक रहते हैं ।। ७३ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक असंख्यातलोकप्रमाण काल तक जीव पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक व वायुकायिक रहते हैं ।। ७४ ।।
क्योंकि, अविवक्षित कायसे आकर व विवक्षित कायमें उत्पन्न होकर असंख्यातलोकमात्र काल तक उसी पर्यायमें परिभ्रमण करके निकलनेवाले जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
जीव वादर पृथिवीकायिक, बादर अपकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक व बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ७५ ॥
यह सूत्र सुगम है। ___ कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव बादर पृथिवीकायादिक उपर्युक्त पर्यायोंमें रहते हैं । ७६ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक कर्मस्थितिप्रमाण काल तक जीव बादर पृथिवीकायादिक उपर्युक्त पर्यायोंमें रहते हैं ॥ ७७ ॥
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