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________________ १४४] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, २, ७३. जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ७३ ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ ७४ ॥ अणप्पिदकायादो आगंतूण अप्पिदकायम्मि समुप्पन्जिय असंखेज्जलागमेत्तकालं तत्थ परियट्टिय णिग्गयम्मि तदुवलंभादो । बादरपुढवि-बादरआउ-बादरतेउ-बादरवाउ-वादरवणप्फदिपत्तेय-- सरीरा केवचिरं कालादो होति ? ॥ ७५॥ सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ७६ ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण कम्मट्टिदी ॥ ७७ ॥ कमसे कम क्षुद्र भवग्रहण काल तक जीव पृथिवीकायिक, अपकायिक, तेजकायिक व वायुकायिक रहते हैं ।। ७३ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। अधिकसे अधिक असंख्यातलोकप्रमाण काल तक जीव पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक व वायुकायिक रहते हैं ।। ७४ ।। क्योंकि, अविवक्षित कायसे आकर व विवक्षित कायमें उत्पन्न होकर असंख्यातलोकमात्र काल तक उसी पर्यायमें परिभ्रमण करके निकलनेवाले जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है। जीव वादर पृथिवीकायिक, बादर अपकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक व बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ७५ ॥ यह सूत्र सुगम है। ___ कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव बादर पृथिवीकायादिक उपर्युक्त पर्यायोंमें रहते हैं । ७६ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। अधिकसे अधिक कर्मस्थितिप्रमाण काल तक जीव बादर पृथिवीकायादिक उपर्युक्त पर्यायोंमें रहते हैं ॥ ७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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