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१३८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, ४८. बादरेइंदियअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? ॥ ४८ ॥ सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ४९ ॥ एवं पि सुगमं । उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ ५० ॥
अणेयसहस्सवारं तत्थेव पुणो गुणो उप्पण्णस्स वि अंतोमुहुर्त मोत्तूण उवार आउठिदीणमणुवलंभादो ।
सुहुमेइंदिया केवचिर कालादो होति ? ॥ ५१ ॥ सुगमं । जहण्णेण खुदाभवग्गहणं ॥५२॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ ५३॥
जीव बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ४८ ।। यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण काल तक जीव बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त रहते हैं ॥ ४९ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक अन्तर्मुहुर्त काल तक जीव एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त रहते हैं ॥ ५० ॥
क्योंकि, अनेक हजारों वार उसी पर्यायमें पुनः पुनः उत्पन्न हुए जीवके भी अन्तर्मुहूर्तको छोड़ और ऊपर की आयुस्थितियां पायी ही नहीं जाती।
जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय कितने काल तक रहते हैं ? ।। ५१ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय रहते हैं ॥ ५२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक असंख्यात लोकप्रमाण काल तक जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय रहते हैं ॥ ५३॥
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