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२, २, ५६.] एगजीवण कालाणुगमे एईदियकालपरूवणं [ १३९
अणिदिएहितो आगंतूण सुहुमेइंदिएसुप्पज्जिय असंखेज्जलागमेत्तकालमद्दहिदजलं व तत्थेव परिभमिय णिग्गयम्मि तदुवलंभादो । बादरहिदीदो किमटुं सुहुमद्विदी ण अब्भहिया जादा'? ण, बादरेइंदिएसु आउवबंधमाणवारेहितो सुहुमेइंदिएसु आउवबंधमाणवाराणमसंखेज्जगुणत्तादो । तं कधं णव्यदे ? एदम्हादो जिणवयणादो ।
सुहुमेइंदिया पज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ५४ ॥ सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ५५॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥५६॥
अन्य इन्द्रियोंवाले जीवोंमेसे आकर सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होकर असंख्यात लोकप्रमाण काल तक तपाये हुए जलके समान उसी पर्यायमें परिभ्रमण करके निकले हुए जीवमें सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
शंका-बादर जीवों की स्थितिसे सूक्ष्म जीवोंकी स्थिति अधिक क्यों नहीं हुई?
समाधान --- नहीं हुई, क्योंकि बादर एकेन्द्रिय जीवों में जितनी वार आयुबन्ध होता है उनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके असंख्यातगुणी अधिक बार आयुके बंध होते हैं।
शंका-यह कैसे जाना कि सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके बादर एकेन्द्रियों की अपेक्षा असंख्यातगुणी वार अधिक आयुबंध होते हैं ?
समाधान--- इसी जिनवचनसे ही तो यह बात जानी जाती है। जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ५४ ॥ यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक रहते है ? ॥ ५५॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक रहते हैं ॥ ५६ ॥
१ प्रतिधु ' अवहिया जादो' इति पाठ
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