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________________ १३६ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, २, ४० सुगममेदं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ४०॥ कुदो ? अणप्पिदिदिएहितो एइंदिएसुप्पजिय घादखुद्दाभवग्गहणमेत्तकालमच्छिय अण्णिदियं गदस्स तदुवलंभादो । उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥४१॥ कुदो ? अणप्पिदिदिएहितो एइदिएसुप्पञ्जिय आवलियाए असंखञ्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टे कुंभारचक्कं व परियट्टिय अण्णिदियं गयस्स तदुवलंभादो । बादरेइंदिया केवचिरं कालादो होति ? ॥ ४२ ॥ सुगममेदं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥४३॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ ॥ ४४ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव एकेन्द्रिय रहते हैं ॥ ४० ॥ क्योंकि, अन्य अविवक्षित इन्द्रियोंवाले जीवों से आकर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होकर, कदलीघातसे घातित क्षुदभवग्रहणमात्र काल रहकर अन्य द्वीन्द्रियादि जीवों में गये हुए जीवके सूत्रोक्त कालप्रमाण पाया जाता है। अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक जीव एकेन्द्रिय रहते हैं ॥४१॥ क्योंकि, अविवक्षित इन्द्रियोंवाले जीवोंमेंसे आकर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होकर आवलीके असंख्यात भागमात्र पुद्गलपरिवर्तन कुम्भारके चक्रके समान परिभ्रमण करके द्वीन्द्रियादिक अन्य जीवोंमें गये हुए जीवके सूत्रोक्त काल घटित होता है । जीव बादर एकेन्द्रिय कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ४२ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल तक जीव बादर एकेन्द्रिय रहते हैं ॥ ४३ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। अधिकसे अधिक असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सार्पणीप्रमाण अंगुलके असंख्यातवें भाग काल तक जीव बादर एकेन्द्रिय रहते हैं ॥४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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