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२, २, ३९.] एगजीयण कालाणुगमे एइंदियकालपरूवणं
[१३५ हरो सुभद्दो सुविसालो सुमणसो सोमणसो पीदिकरो त्ति एदे णव पत्थडा णवगेवज्जेसु । एदेसिमाउवाणं वडि-हाणीओ णत्थि, पादेक्कमेक्कक्कपत्थडस्स पाहणियादो । तेसिमाउआणं संदिट्ठी एसा- २३२४.२५२६/२७ २८ २९ ३० ३१।। णवाणुद्दिसेसु आइच्चो णाम एक्को चेव पत्थडो। तम्हि' आउअं एत्तियं होदि |३२|| पंचाणुत्तरेसु सबढ़सिद्धि सण्णिदो एक्को चेव पत्थडो । विजय-वैजयंत-जयंत-अवराजिदाणं जहण्णाउअं समयाहियबत्तीससागरोवममेत्तमुक्कस्सं तेत्तीससागरोवमाणि । जहष्णुक्कस्सभेदाभावादो सव्वट्ठसिद्धिविमाणस्स पुध परूवणा कीरदे
सव्वट्टसिद्धियविमाणवासियदेवा केवचिरंकालादो होति ? ॥३७॥ गयत्थमेदं । जहण्णुक्कस्मेण तेत्तीस सागरोवमाणि ॥ ३८ ॥ एदं पि सुगमं । इंदियाणुवादेण एइंदिया केवचिरं कालादो होति ? ॥ ३९ ॥
अमोघ, सुप्रबुद्ध, यशोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमनस्, सौमनस् और प्रीतिंकर । इनमें आयुओंकी हानि-वृद्धि नहीं है, क्योंकि प्रत्येकमें एक एक प्रस्तरकी प्रधानता है। इनकी आयुओंकी संदृष्टि यह है । (मूलमें देखिये )
नौ अनुदिशोंमें आदित्य नामका एक ही प्रस्तर है जिसमें आयुका प्रमाण ३२ सागरोपम है।
पांच अनुत्तरों में सर्वार्थसिद्धि नामका एक ही प्रस्तर है। इनमें विजय, वैजयन्त जयन्त और अपराजित, इन चार विमानों की जघन्य आयु एक समय अधिक बत्तीस सागरोपमप्रमाण तथा उत्कृष्ट आयु तेतीस सागरोपमप्रमाण है।
सर्वार्थसिद्धि विमानमें जघन्य और उत्कृष्ट आयुका भेद नहीं है, इसलिये उसकी पृथक् प्ररूपणा की जाती है।
जीव सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ३७॥ इस सूत्रका अर्थ सुगम है।
कमसे कम और अधिकसे अधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण काल तक जीव सर्वार्थसिद्धिं विमानवासी देव रहते हैं ॥ ३८ ॥
यह सूत्र भी सुगम है। इन्द्रियमार्गणानुसार जीव एकेन्द्रिय कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ३९ ॥
१ प्रतिषु ' तम्हा' इति पाठः ।
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