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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, ३६. समयाहियाणि । सेसं सुगम ।
उक्कस्सेण वीसं बावीसं तेवीसं चउवीसं पणुवीसं छब्बीसं सत्तावीसं अट्ठावीसं एगुणतीसं तीसं एक्कत्तीसं बत्तीसं तेत्तीसं मागरोवमाणि ॥ ३६॥
एदाणि उक्कस्साउआणि जहण्णाउअविहाणेण जोजेयव्याणि । एदेहि जहण्मुक्कस्ससुत्तेहि देसामासिएहि सूइदत्थस्स परूवणा कीरदे । तं जहा- आणदो पाणदो पु'फओ त्ति आणद-पाणदकप्पेसु तिण्णि पत्थडा। तेसिमाउअस्स पुव्युत्तकमेण आणिदसंदिट्टी एसा- |सादकरो आरणो अच्चुदो त्ति आरण-अच्चुदकप्पेसु तिणि पत्थडा । एदेसिमाउआणं संदिट्ठी-13 । एत्तो उवरि सुदंसणो अमोघो सुप्पयुद्धो जमो
एक समय अधिक बत्तीस सागरोपमप्रमाण जघन्य आयु है। शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
____ अधिकसे अधिक बीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पञ्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, बत्तीस और तेतीस सागरोपम काल तक जीव आनत-प्राणत आदि विमानवासी देव रहते हैं ॥ ३६ ॥
इन उत्कृष्ट आयुओंको जघन्य आयुके विवरणानुसार योजित कर लेना चाहिये। अर्थात् आनत-प्राणतमें उत्कृष्ट आयु बीस सागरोपम, व आरण-अच्युतमें वाईस सागरोपम है । नौ ग्रेवयकोंमें क्रमशः २३, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ सागरोपम है। नौ अनुदिशोंमें बत्तीस सागरोपम है और चार अनुत्तर विमानों में तेतीस सागरोपम उत्कृष्ट आयु है ।
जघन्य और उत्कृष्ट आयुस्थितिका निर्देश करनेवाले उपर्युक्त दोनों सूत्र देशामर्शक है, अतएव उनके द्वारा सूचित किये गये अर्थकी यहां प्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार है
आनत-प्राणत कल्पोंमें तीन प्रस्तर हैं - आनत, प्राणत और पुष्पक। इनमें पूर्वोक्त क्रमसे निकाला गया आयुप्रमाण इस प्रकार है- आनतमें १९, प्राणतमें १९१ और पुष्पकमें २० सागरोपम ।
आरण-अच्युत कल्पोंमें तीन प्रस्तर हैं-- सातकर, आरण और अच्युत । इनकी आयुका प्रमाण निकालने पर सातंकरमें २०३, आरणमें २१३ और अच्युतमें २२ सागरोपम आता है।
अच्युत कल्पसे ऊपर नौ ग्रैवेयकोंके नौ प्रस्तर हैं जिनके नाम हैं-सुदर्शन,
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