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२, २, ३५.] एगजीवेण कालाणुगमे देवकालपरूवर्ण [१३३ सहस्सारो त्ति एक्को चेव पत्थडो सदर-सहस्सारकप्पेसु । तस्स आउअस्स संदिट्ठी ।
आणदप्पहुडि जाव अवराइदविमाणवासियदेवा केवचिरं कालादो होति ? ॥ ३४ ॥
सुगममेदं ।
जहण्णेण अट्ठारस वीसं वावीसं' तेवीसं चउवीसं पणुवीस छब्बीसं सत्तावीसं अट्ठावीसं एगुणत्तीसं तीसं एकत्तीसं बत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३५॥
आणद-पाणदकप्पे साद्ध अट्ठारससागरोवमाणि। आरण-अच्चुदकप्पे समयाहियवसिं सागरोवमाणि | उवरि जहाकमेण णवगेवज्जेसु बावीसं तेवीसं चउवीसं पणुवीसं छब्बीसं सत्तावीसं अट्ठावीसं एगुणत्तीसं तीसं सागरोवमाणि समयाहियाणि । णवाणुदिसेसु एक्कत्तीससागरोवमाणि समयाहियाणि । चदुसु अणुत्तरेसु बत्तीसं सागरोवमाणि
शतार-सहस्रार कल्पोंमें सहस्रार नामका एक ही प्रस्तर है। उसमें आयुप्रमाण है १८२ सा.।
जीव आनत कल्पसे लेकर अपराजित तकके विमानवासी देव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ३४ ॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम सातिरेक अठारह, बीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस व बत्तीस सागरोपम काल तक जीव क्रमशः आनत आदि अपराजित विमानवासी देव रहते हैं ॥ ३५ ॥
आनत-प्राणत कल्पमें जघन्य आयु प्रमाण साढ़े अठारह सागरोपम व आरणअच्युत कल्पमें एक समय अधिक बीस सागरोपम है। इससे ऊपर नव ग्रैवेयकोंमें क्रमशः सुदर्शनमें बाईस, अमोघमे तेईस, सुप्रबुद्ध में चौबीस, यशोधरमें पच्चीस, सुभद्रमें छब्बीस, विशालमें सत्ताईस, सुमनसमें अट्ठाईस, सौमनसमें उनतीस और प्रीतिंकर में तीस सागरोपमप्रमाण जघन्य आयुस्थिति है। प्रैधेयकोंसे ऊपर अर्चिए, अर्चिमाली आदि नव अनुदिशा में एक समय अधिक इकतीस सागरोपमप्रमाण जघन्य आयुस्थिति है। अनादिशोसे ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित, इन चार अनुत्तर विमानों में
१ प्रतिषु ' हिवीसं ' इति पाठः ।
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