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१३२ छक्खंडागमे खुदाबंधी
[२, २, ३३. इदि आरिसवयणादो।
अंजणो वणमालो णागो गरुडो लंगलो बलहद्दो चक्कमिदि एदे सणक्कुमारमाहिदेसु सत्त पत्थडा। एदेसिमाउअप्पमाणे आणिज्जमाणे मुहमड्डाइज्जसागरोवमाणि, भूमी सासत्तसागरोवमाणि, सत्त उस्सेहो होदि । तेसिं संदिट्ठी- -
। अरिहो देवसमिदो बम्हो बम्हुत्तरो त्ति चत्तारि बम्ह-बम्हुत्तरकप्पेसु पत्थडा । एदेसिमाउआणं संदिट्ठी एसा- । बम्हणिलओ लंतओ त्ति लांतय-काविद्वेसु दोष्णि पत्थडा । तेसिमाउआणमेसा संदिट्ठी-गा। महासुको त्ति एक्को चेव पत्थडो सुक्क-महासुक्ककप्पेसु । तम्हि आउअस्स एसा संदिट्ठी ।।
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इस आर्ष वचनसे जाना जाता है कि सौधर्म ईशान कल्पमें इकतीस प्रस्तर हैं।
अंजन, वनमाल, नाग, गरुड़, लांगल, बलभद्र और चक्र, ये सात प्रस्तर सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पोंमें हैं। उनमें आयुका प्रमाण लानेके लिये मुख अढ़ाई सागरोपम, भूमि साढ़े सात सागरोपम और उत्सेध सात है । ( अतएव यहां वृद्धिका प्रमाण हुआ (७१-२३)७=", इस प्रकार प्रथम प्रस्तरका आयुप्रमाण हुआ +==३३ । इसी प्रकार वृद्धिमें इष्ट प्रस्तरकी संख्याका गुणा करके मुखमें जोड़नेसे वनमालमें आयुका प्रमाण ३१३, नागमे ४२, गरुड़में ५४, लांगल में ६१, बलभद्र में ६११ और चक्रमे ७१आता है।
अरिष्ट, देवसमित, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर, ये चार विमान-प्रस्तर ब्रह्म-ब्रम्होत्तर कल्पोंमें हैं। इनकी आयुका प्रमाण मुख ७१, भूमि १०३ और उत्सेघ ४ लेकर पूर्वोक्त विधिके अनुसार अरिपमें ७३+४८, देवसमितमें ३४२+७१ =९, ब्रह्ममें ३४३+७३=९३ और ब्रह्मोत्तरमें x४+७१ = १०३ आता है।
ब्रह्मनिलय और लांतव, ये लांतव-कापिष्ट कल्पोंके दो विमान-प्रस्तर हैं, जिनमें पूर्वोक्त विधि अनुसार आयुका प्रमाण इस प्रकार है-(१४३-१०३):२२ हा. वृ.। २४१+१०१=१२३, २४२+१०५=१४३ अर्थात् ब्रह्मनिलयमें १२३ और लांतवमें १४१ सागरोपम है।
शुक्र-महाशुक्र कल्पों में महाशुक्र नामका एक ही प्रस्तर है। वहां आयुके प्रमाणकी संदृष्टि है १६१ सा.।
१ प्रतिषु णंगलो' इति पाठः । २ अ-आप्रत्योः 'एदेसुमाउआणं' इति पाठः ।
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